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किया ।
६० आचार्य कक्क ।
६१. प्राचार्य देवगुप्त : ये बड़े विद्वान् श्राचार्य थे ।
६२. आचार्य सिद्ध ।
६३. आचार्य कक्क ।
१.
[ जैन धर्म का मौलिक इतिहास - भाग ४
६४. देवगुप्तसूरि ।
६५. सिद्धसूरि : आपका समय विक्रमीय १३३० का बताया जाता है । ६६. कक्कसूरि : सम्वत् १३७१ में शाह शहजागर ने आपका पद महोत्सव
६७. आचार्य देवगुप्त ।
६८. श्री सिद्धसूरि ।
६६. आचार्य कक्क ।
७०. आचार्य देवगुप्त ।
७१. आचार्य सिद्ध : सम्वत् १५६५ में मन्त्री लोलागर ने मेड़ता में आपका पद महोत्सव किया। आपके देव कल्लोल नामक उपाध्याय ने 'कालिकाचार्य कथा' की सम्वत् १५६६ में रचना की ।.
७२. आचार्य कक्क : आपको विक्रम सम्वत् १५६६ में जोधपुर में प्राचार्य पद पर आसीन किया गया । आपके समय में कोरंटगच्छ श्रौर तपागच्छा एक-दूसरे में मिल गये और "कोरंटा तपागच्छ" का जन्म हुआ । "
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प्रस्तुत इतिहास ग्रन्थमाला के इस चतुर्थ भाग में वीर निर्वारण सम्वत् २००० तक के आसपास का ही इतिहास दिया जा रहा है । अतः उपकेश गच्छ पट्टावली में उल्लिखित : प्राचार्यों का भी इसी काल तक का विवरण प्रस्तुत किया गया है ।
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-सम्पादक
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