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सामान्य श्रुतधर काल खण्ड २ ]
४२. आचार्य कक्क ( नवम ) ४३. देवगुप्तसूरि ( नवम ) ४४. सिद्धसूरि ( नवम ) ४५. कक्कसूरि ( दशम )
४६. देवगुप्तसूरि ( दशम)
उपकेशगच्छ
४७. सिद्धसूरि ( दशम) : आपके शिष्य जम्बूनाग ने लोद्रवा के राजा तनु का वर्षफल निकाल कर यह भविष्यवारणी की कि यवन मुमुचि ( मुहम्मद गजनवी ) द्वारा आक्रमण किया जायगा और वह हार जायगा ।
आपके आचार्यकाल में कोरंट गच्छ के प्राचार्य नन्न द्वारा अनेक वंशों को जैन वंश में सम्मिलित किया गया ।
४८. कक्कसूरि ( एकादशम ) ४६. देवगुप्तसूरि ( एकादशम ) ५०. सिद्धसूरि ( एकादशम )
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५१. आचार्य कक्क : ये प्राचार्य घोर तपस्वी माने गये हैं । विक्रम सम्वत् ११५५ में ये प्राचार्य पद पर आसीन हुए और जीवन भर एकान्तर उपवास और पारण के दिन प्रायम्बिल करते रहे । इनका आचार्य हेमचन्द्र बड़ा सम्मान करते थे । इन्होंने शिथिलाचार को मिटाने के लिये अनेक साधु-साध्वियों को त्याग कर क्रियोद्धार किया और तब से यह गच्छ ककुदाचार्य गच्छ के नाम से प्रसिद्धि को प्राप्त हुआ । आप ५७ वर्ष तक प्राचार्य पद पर रहे और विक्रम सम्वत् १२१२ में आपका स्वर्गवास हुआ ।
गया है ।
५२. देवगुप्तसूरि (बारहवें ) : उपकेशगच्छ के ५१वें आचार्य कक्कसूरि द्वारा क्रियोद्धार और ककुदाचार्य गच्छ की स्थापना के पश्चात् देवगुप्तसूरि श्राचार्य पद पर आसीन हुए और लगभग ६७ वर्ष तक आचार्य पद पर रहे । आपका समय लगभग ११६५ से १२३२ का बताया जाता है ।
५३. सिद्धसूरि : आपके समय में प्रगहिल्लपुर पट्टण में यशोदेव धनदेव ने ।। हजार ग्रन्थाग्रन्थ प्रमाण नवपद टीका की रचना की ।
५४. प्राचार्य कक्क ।
५५. देवगुप्तसूरि : आपका समय विक्रम सम्वत १२५२ का बताया
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५६. सिद्धसूरि ।
५७. कक्कसूरि ।
५८. देवगुप्तसूरि ।
५६. सिद्धसूरि : आपके समय में विक्रम सम्वत् १२५२ में शाहबुद्दीन गौरी द्वारा ओसियां पर आक्रमण हुआ ।
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