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________________ सामान्य श्रुतधर काल खण्ड २ अजयदेव [ ४५३ गौरी की सेनाओं के बीच घमासान युद्ध हुआ । इस युद्ध में शहाबुद्दीन गौरी ने पृथ्वीराज चौहान को बन्दी बना लिया और कुछ ही मास पश्चात् उसे मौत के घाट उतार दिया । शहाबुद्दीन गौरी ने पृथ्वीराज के पुत्र गोविन्दराज को अपनी अधीनता स्वीकार करवा अजमेर के राजसिंहासन पर बिठाया । पृथ्वीराज के भाई हरिराज ने विदेशी आततायी की अधीनता स्वीकार करने वाले अपने भ्रातृज गोविन्दराज से अजमेर का राज्य छीन लिया और स्वयं अजमेर के सिंहासन पर आसीन हुआ । गोविन्दराज रणथम्भौर में जा रहा और वहां राज्य करने लगा । वि० सं० १२५० ( वीर नि० सं० १७२० ) में शहाबुद्दीन गौरी के तुर्क जाति के गुलाम कुतुबुद्दीन ऐबक ने अजमेर राज्य के अधीनस्थ भाग - दिल्ली पर अधिकार कर लिया । उसी समय से दिल्ली एक प्रकार से अनौपचारिकरूपेण भारत में मुस्लिम राज्य की राजधानी बन गई। अजमेर के राजा हरिराज ने अपने सेनापति चतरराय को एक बड़ी सेना देकर कुतुबुद्दीन को दिल्ली से भगा देने का आदेश दिया । ऐबक के साथ हुए युद्ध में हरिराज की सेना पराजित हुई और चतरराय अपनी बची शेष सेना के साथ निराश हो अजमेर लौट आया । वि० सं० १२५२ में कुतुबुद्दीन ऐबक ने अजमेर पर आक्रमण कर हरिराज को युद्ध में पराजित कर अजमेर पर अधिकार कर लिया और वहां अपने विश्वासपात्र मुस्लिम अधिकारी को अजमेर का हाकिम नियुक्त कर वह दिल्ली लौट गया । इस प्रकार प्रतापी चौहान राजवंश के राज्य की समाप्ति के साथ ही उस समय उसके अधीनस्थ मेवाड़ राज्य के मांडलगढ़ से पूर्व के पूरे भाग पर मुसलमानों का अधिकार हो गया । इससे पूर्व ही शहाबुद्दीन गौरी ने गहरवार राजा जयचन्द से कन्नौज और बनारस का राज्य छीन कर उस पर अपना अधिकार कर लिया था । ] अजमेर पर अधिकार कर लेने के अनन्तर मुस्लिम राज्य के विस्तार के लिए कुतुबुद्दीन ने वि० सं० १२५२ में गुजरात पर चढ़ाई कर वहां लूट मार करना प्रारम्भ किया । उस समय गुजरात राज्य की आततायियों से रक्षा करने के लिये गुर्जरराज भीम (द्वितीय) के शक्तिशाली सामन्त एवं प्रधानामात्य बाघेला वीर धवल ने अपनी दूरदर्शितापूर्ण अद्भुत् राजनैतिक सूझ-बूझ से काम लिया । वीर धवल ने मेरों को विपु निक सहायता के साथ-साथ बड़ी धनराशि देकर उनके साथ कुतुबुद्दीन पर और उसके राज्य के अनेक भागों पर प्राक्रमरण किया । इस अप्रत्याशित चहुंमुखी प्रांक्रमण ने कुतुबुद्दीन को आगे बढ़ने के स्थान पर पीछे की ओर हटने एवं अजमेर के गढ़ में शरण लेने के लिये बाध्य कर दिया । मेरों ने उसके अजमेर के गढ़ को भी घेर लिया, जिसके परिणामस्वरूप कुतुबुद्दीन को कई मास तक गढ़ में घिरे रहना पड़ा । अन्ततोगत्वा शहाबुद्दीन गौरी ने गजनी से नई सेना भेज कर घेरा उठवाया । वि० सं० १२६३ में शहाबुद्दीन गौरी लाहौर से गजनी की ओर लौटते समय धमेक के पास गक्खरों के हाथ से मारा गया और उसका भतीजा गयासुद्दीन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002074
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1995
Total Pages880
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
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