________________
४५२ ]
[ जैन धर्म का मौलिक इतिहास - भाग ४
इस प्रकार भारत के राजाओंों में कुछ समय के लिये थोड़ी बहुत राजनैतिक चेतना आई किन्तु विदेशी प्रातताइयों के हाथों हुई भारतीय राजानों एवं भारतीय प्रजा की दयनीय दुर्दशा के उपरान्त भी सार्वभौम सत्ता सम्पन्न राष्ट्रव्यापी सुदृढ़ केन्द्रीय शासन की स्थापना में भारतवासी पूर्णतः असफल ही रहे । सशक्त केन्द्रीय प्रभुसत्ता के प्रभाव का दुष्परिणाम यह हुआ कि भारत के विभिन्न प्रदेशों के छोटेबड़े राजा परस्पर लड़-भिड़ कर कमजोर होते गये ।
दूसरी ओर आपस में लड़-भिड़ कर अशक्त बनी गजनी की हुकूमत महमूद गजनवी के अन्तिम उत्तराधिकारी बहरामशाह के शासनकाल में जिस समय लड़खड़ा रही थी, उस समय गौर के सुलतान सैफुद्दीन गौरी के भाई अल्लाउद्दीन हुसैन गौरी ने गजनी पर आक्रमण कर उसे अपने अधिकार में ले लिया । बहराम गजनी से भाग कर लाहौर में आ रहा । वि० सं १२०६ में बहराम की मृत्यु के पश्चात् उसका पुत्र खुसरोशाह लाहोर के राजसिंहासन पर बैठा । खुसरोशाह की मृत्यु के पश्चात् उसका पुत्र खुसरो मलिक लाहोर का स्वामी बना और वि० सं० १२३७ में शहाबुद्दीन मुहम्मद गौरी ने खुसरोमलिक को युद्ध में परास्त कर लाहोर पर भी अधिकार कर लिया । इस प्रकार महमूद गजनवी द्वारा संस्थापित गजनवी राज्य का धरातल से नामोनिशान तक उठ गया ।
सैफुद्दीन के मरने पर उसका चचेरा भाई गयासुद्दीन मुहम्मद गौरी गोर की सल्तनत का स्वामी बना । उसने अपने छोटे भाई शहाबुद्दीन गौरी को गजनी का प्रशासक नियुक्त किया । गजनी का हाकिम बनते ही शहाबुद्दीन गौरी ने क्रमशः मुलतान और भटिंडे पर आक्रमण कर उन दोनों को अपने अधिकार में ले लिया ।
आर्यधरा पर बढ़ते हुए शहाबुद्दीन गौरी को भारत से बाहर निकालने के लक्ष्य से पृथ्वीराज चौहान ने एक बड़ी सेना और अनेक भारतीय राजाओं के साथ अजमेर से प्रयाण कर थाणेश्वर के निकट तराइन में शहाबुद्दीन गौरी की सेनाओं पर वि० सं० १२४८ में भीषण आक्रमण किया । तराइन के युद्ध में पृथ्वीराज चौहान ने शहाबुद्दीन गौरी को बुरी तरह पराजित किया । शहाबुद्दीन गौरी गम्भीर रूप से घायल हो अपनी बची-खुची सेना के साथ रणभूमि छोड़ भाग निकला । लाहौर में अपने घावों की चिकित्सा कराने के पश्चात् शहाबुद्दीन गजनी चला गया ।
पृथ्वीराज चौहान ने वि० सं० १२४६ में तबरहिंद - भटिंडे के किले पर आक्रमण कर उसे घेर लिया । भटिंडे के हाकिम जियाउद्दीन ने अपनी सेना के साथ किले में रहते हुए लगभग १३ मास तक किले की रक्षा की किन्तु अन्त में उसे चुपचाप किला खाली कर भाग जाना पड़ा ।
वि० सं० १२५० में शहाबुद्दीन गौरी एक विशाल सशक्त सेना ले दूसरी बार भारत पर चढ़ आया । थारणेश्वर के पास पृथ्वीराज चौहान और शहाबुद्दीन
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org