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________________ ऐतिहासिक तथ्य 1 [ २७ द्वारा इस प्रकार के नितान्त धर्मनिष्ठ माहरणों के लिये प्रदान की गई अशन, पान, आवास, परिधान आदि की सुविधाओं का उपभोग दूसरे छद्म व्यक्ति न कर सकें । • माहरणों के लिये इस प्रकार की व्यवस्था भरत चक्रवर्ती द्वारा की गई थी, न कि किसी भी तीर्थंकर महाप्रभु अथवा किसी धर्माचार्य द्वारा । चतुर्विध तीर्थ की स्थापना तीर्थंकर प्रभु द्वारा की गई थी । उसमें श्रावक वर्ग भी सम्मिलित था । चतुर्विध तीर्थ की स्थापना के समय ऋषभादि महावीरान्त चौबीसों तीर्थंकरों में से किसी भी तीर्थंकर महाप्रभु ने श्रावक वर्ग के लिये त्रिकाल सन्ध्या, कलशाभिषेक, प्रतिष्ठा, तीर्थ यात्रा अथवा यज्ञोपवीत का विधान किया हो, इस प्रकार का एक भी उल्लेख सम्पूर्ण प्रागमिक वांग्मय में कहीं नाम मात्र के लिये भी दृष्टिगोचर नहीं होता । श्रमण भगवान् महावीर के समय में भी श्रावकों ने यज्ञोपवीत धारण किया हो, इस प्रकार का एक भी उल्लेख कहीं उपलब्ध नहीं होता । इस प्रकार की स्थिति में इस लघु पुस्तिका के एतद् विषयक उपरि वरिणत उल्लेख से यह आत्यन्तिक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक तथ्य प्रकाश में आता है कि आचार्य श्री कुन्दकुन्द ने ही दिगम्बर परम्परा में यज्ञोपवीत एवं उपर्युक्त छहों कर्मों का विधान किया । • इस प्रकार आचार्य श्री हस्तिमलजी महाराज द्वारा खोज निकाली गई इस लघु पुस्तिका से इन ऐतिहासिक तथ्यों पर प्रकाश पड़ता है कि आचार्य कुन्दकुन्द ईस्वी सन् ७१३ में विद्यमान थे । वे भट्टारक श्री जिनचन्द्र के शिष्य थे, उन्होंने रामगिरि पर्वत पर बाल्यावस्था में भट्टारक जिनचन्द्र के पास पंच महाव्रतों की दीक्षा ग्रहण की थी और कालान्तर में इन्हीं प्राचार्य श्री कुन्दकुन्द ने दिगम्बर परम्परा में श्रावकों के लिये यज्ञोपवीत के साथ-साथ् षट्कर्मों का प्रचलन प्रारम्भ किया । "प्रतिष्ठा पाठ" नामक इस पुस्तिका का आलेखन आज से लगभग १०३ वर्ष पूर्व विक्रम सम्वत् १९४० में पंडित महिपाल द्वारा गणेश नामक ब्राह्मण से करवाया गया । इस प्रति का लेखन किस प्राचीन प्रति के आधार पर करवाया गया, इस सम्बन्ध में केवल इतना ही उल्लेख है "ई मरजाद प्रतिष्ठा हुई, सो प्रागम के अनुसार लिखी है ।" इस उल्लेख से यही प्रकट होता है कि प्रतिष्ठा सम्बन्धी प्राचीन पत्रों के आधार पर ही सम्भवतः इस पुस्तिका का आलेखन करवाया गया होगा । यह "प्रतिष्ठा पाठ" नाम की लघु पुस्तिका स्थान-स्थान पर प्रतिशयोक्तियों से प्रोतप्रोत है, किसी एक प्रतिष्ठा पर ३८ करोड़ रुपया किसी दूसरी पर २४ करोड़ रुपया, तो किसी पर १६ करोड़ रुपया, किसी पर ३६ करोड़ रुपया, किसी पर ३५ करोड़ रुपया आदि व्यय किये जाने का उल्लेख है । सब मिलाकर बीस प्रतिष्ठानों पर लगभग साढे चार अरब रुपये खर्च किये जाने का इस लघु पुस्तिका में उल्लेख है | आचार्य श्री कुन्दकुन्द द्वारा करवाई गई प्रतिष्ठानों और उनके तत्वावधान में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002074
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1995
Total Pages880
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
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