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________________ ऐतिहासिक तथ्य ] [ २५ समस्या से कोई कहीये काहे का मुनि है यन का आचरण धीवर का है। ऐसी बात सुरिण करि कोई श्रावक कही स्वामी कमंडल में कांई छै। स्वामी कही कमंडल के जल में फूल है । स्वामी दिखाओ। तदि कमंडल उंधो करयो। सो कमंडल में सं फूल के ढेर हो गया। पर स्वामी का नाम चौथा पद्मनन्दि स्वामी प्रकट भया । श्रुक्ताचार्य पीछी कमंडल दोनूं उडाय दीनां । तदि स्वामी सब यतीन की चादर बैठना उडाय दीना । श्रुक्ताचार्य कू नग्न करि दीना। पीछे तो उपर चांद स्या नीचे इस तरे से चादरि चादरि परि पीछी होय गई, कुंठ ने लगी यति बाहर मेलने लाग्या ऐसा स्वामी चिमत्कार बताया। अब आप बोल्या ऐसी धर्त विद्या से वाद नहीं होता है। अब मैं कहता हूं या सरस्वती की प्रतिमा पाषाणमयी छे इनै बुलावो ज्यो कहै सो इ पहली यात्रा करेगा । तदि श्रुक्ताचार्य अनेक पक्ष की स्थापना करी बुलाई तो भी नहीं बोली ।। तदि स्वामी आप कमंडल पीछी हाथ में ले करि । श्री सीमंदर स्वामी कू नमस्कार करि पीछी सरस्वती का शिर उपर धरि करि प्राप प्रकट बौलते भये । हे देवी ! अब तूं सत्य वचन का प्रकाश करहु तदि देवी गर्जना रूप तीन बोल प्रकट बोली आदि दिगम्बर, आदि दिगम्बर, आदि दिगम्बर, गर्भ का बालक है चिहू जामे तदि दिगम्बर सम्प्रदाय सत्य रूपी होय गई। श्वेताम्बरी भी देवी कुं बुलावना : सत्य वचन का प्रकाश करहु तदि देवी गर्जना रूप तीन बोल प्रकट बोली आदि दि. : सरु करयात देवी कही तुम बारा बरस तलक झगड़ा करो हमने एक सत्यार्थ था सो ई कह्या । तदि श्वेताम्बरी के सैकरू शिष्य श्री कुन्दकुन्दाचार्य के शिष्य भये । अर प्रथम यात्रा श्री कुन्दकुन्दाचार्य जी का संघ का लोग करता भया । पर श्री नेमिनाथ भगवान् की प्रतिष्ठा करी । अर सकलगिर प्रतिष्ठित भया । तदि मूलसंघ सरस्वती गच्छ बलात्कारगरण श्री कुन्दकुन्दाचार्य का वंश बड़े नन्दि मुनिराज के प्राचार्य पद दीना सो उनकी प्रामनाय सकल संख्या गायत्री कर्म अंग न्यासादिक कर्म, प्रतिष्ठा, कलशाभिषेक, पूजा, दान, यात्रा, इत्यादि छहूं कर्मन की स्थापना करी सम्यग्दर्शन ज्ञान चारित्र रूप तीन वलय का सूत्र की यज्ञोपवीत श्रावक लोग कू दीनी । अर जिनमार्ग का प्रकाश करि र आप वापनारा नाम नगर के वन में आये सब श्रावकन 1 शिष्या (शिक्षा) दे करि आप सन्यास धारि करि पांचवे स्वर्ग गये । विशेष अधिकार बड़े ग्रन्थन से जाण लेणा यहां अधिकार मात्र वर्णन किया है।" "प्रतिष्ठा पाठ' शीर्षक वाली इस लघु पुस्तिका के उपरि लिखित उद्धरण से निम्नलिखित चार तथ्य प्रकाश में आते हैं : १. दिगम्बर परम्परा के महान् प्रभावक आचार्य श्री कुन्दकुन्द विक्रम सम्वत् ७७० में विद्यमान थे। २. उनके गुरु का नाम आचार्य श्री जिनचन्द्र था। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002074
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1995
Total Pages880
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
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