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[ जैन धर्म का मौलिक इतिहास-भाग ४
विचार करता भया ।। यह कौरण सा आकार है छ खण्ड में यह आकार कहूं देख्या नहीं। ऐसा आकार कौन का है। तदि चक्रधर भगवान् कू पूंछता भया हे जिनेन्द्र ! ये मनुष्यों का आकार कौनसा जीव है । तदि भगवान् की दिव्य ध्वनि हुई । यह भरत के मुनिराज है। तुम पहली धर्मवृद्धि का कारण पूछता था सो अब ये दर्शरण करने निमित्त आये हैं । ऐसा शब्द सुरिणकरि प्रसन्न होय चक्रधर मुनिराय कू कटनी उपरि विराजमान करि र नमस्कार करता भया तदि मुनिराज का नाम एलाचार्य प्रकट होता भया। पर भगवान् की आज्ञा हुई। इन कू सकल संदेह का निवारण करावणे वाला सिद्धान्त सिखायो। अर ग्रंथ लिखाय द्यो, सो यो धर्म का उद्योतक होयगा। अब आपके जैसा संदेह छा सो सब भगवान् सूं पूछ करि निसंदेह भया, एक दिन चक्रधर विनती करी आप आहार • उतरो तदि आप कहि जोग्यता नाहीं काहे ते इहा दिन हमारा क्षेत्र में रात्रि हम वांहां के उपजे याशे आहार कैसे अंगीकार करे सो स्वामी दिन सात (७) तांई निराहार रहे। भगवान् की दिव्य ध्वनि निरूपी अमृत के पीवते क्षुधा बाधा नै देती भई, च्यार शास्त्र लिखाये ।
मतान्तर निर्णय चौरासी हजार, सर्व सिद्धान्त मन बियासी हजार, कम प्रकाश बहतरि हजार, न्याय प्रकाश बासठि हजार । ऐसे ग्रंथ च्यार लेकरि भगवान् सू आज्ञा मांगी देव विमारण में बैठ करि रामगिरि उपरि प्राय विराजे देव अपने स्थानक गए अब सर्व ही स्वामी की आग्या में चालते भये । श्वेताम्बर धर्म छुड़ाय दिगम्बर धर्म का मार्ग बताया अर धन वाले कू धन बताया, पुत्रवान् कू पुत्र दिया, राज्य वाला राज्य दीनो । केवल धर्म का मार्ग बधावा के निमित्त हजारु श्रावक व्रती हो गये । कुंद सेठ सबन का मालिक भया। ५६४ मुनिराज हुआ। ४०० आजिका हुई । अब आप सकल संघ सहित श्री गिरनारजी की यात्रा वास्ते चालता भया पर श्वेताम्बरीन का संघ भी जावा चाल्या, तिनकी संख्या श्रीपूज्य तो ८४ गच्छ के अर यति १२००० अर वन के श्रावक श्रावकरणी दोय लाख बावन हजार अरु चाकर पयादे बहुत सो ये दोउ संघ गिरनारजी के नीचे अपणी अपणी हद में मुकाम करते भये । तदि श्री कुन्दकुन्दाचार्य जी का संघ ऊपर चढ़ने लगा तदि श्वेताम्बरीन का हलकारा अगाडी नहीं करणे दीना। पर कही पहली यात्रा हमारी होयगी पीछे यात्रा तुम्हारी होयगी । यह समाचार सुरिण करि सब ही पाछा प्राय गया । पर प्राचार्य सू विनती करी हे नाथ ! यह श्वेताम्बरी तो बहोत । अपना संघ थोड़ा सो यात्रा कैसे होवेगी तदि प्राचार्य प्राज्ञा करी तुम वांसु कहो तुमारे हमारे कछु वैर तो है नहीं पर जो तुम अपने मत का अाडम्बर राख्या चावो छो तो अरु याहां प्रावो जो जीतेंगे सो ही पहली यात्रा करेगा । अबे यात्रा तुम भी नहीं करोगे ऐसा वचन होता थका दौन्यू संघ का ही वाद ठहर्या ज्यो जीते सो यात्रा पहली करेगा । दिगम्बर के स्वामी श्री कुन्दकुन्दाचार्य अर श्वेताम्बर के मालिक श्रुताचार्य जा के चौइस महाकाल पक्ष का साधन सो इनकै केतेक दिन तलक वाद भया । जदि येक दिन श्रुक्ताचार्य कुन्द-कुन्द स्वामी का कमंडल में छाकरि दीनी पर
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