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ऐतिहासिक तथ्य ]
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अर फेर कही देव दोय आपके दर्शन करण कू पाया सो आपका दर्शन करि र वे देव भगवंत की सभा में ही गये । ये समाचार सुरिण कर श्री कुन्दकुन्द मुनिराज विशेष प्रानन्द कुं प्राप्त भये, अर चौडे ऐसा शब्द का प्रकाश करते भये । अब श्रीमंदर स्वामी का दर्शन करेंगे तदि आहारादिक लेंगे । या कहि करि स्वामी फिर मौनि धार करि ध्यान में मगन भये । ऐसा ध्यान आवे तदि वेसा कारण होय । अवि दो च्यार दिन में चित्त की थिरता ते वैसा ही ध्यान प्रकट भया। पर समवसरण वरणाया पर साक्षात्कार श्रीमंदर स्वामी कू नमस्कार करता भया, वैसा समय धर्मवृद्धि फैरि भगवंत की हुई। अर प्रस्न भया पर भगवान् कही ज्यो देव गये थे सो पाछै आये अब उनके ऐसा नियम हुअा के ज्यो दर्शण विन सर्व त्याग है । तदि देवां कही भो स्वामिन् ! वे पाये नहीं तदि भगवंत याज्ञा करी तुम बेसमय गये तब देव पूछते भये समय कौनसा तदि भगवंत कहि। यहां रात्रि होती वहां दिन है। वहां दिन है यहां रात्रि है । सूर्य का गमन ऐसा है सो तुम दिन में वां जानो तो वन का आगमन हो जायगा । ऐसा वचन सुनि करि वे दोन्यू देव ध्यान (दिन) समय में आये मुनिराज का दर्शन हुआ अर परस्पर वचनालाप हुआ। देव हाथ जोडि नमस्कार विनती करी पाप विमान में विराज अर श्रीमंदर स्वामी का दर्शण करो या बात सुणिकरि प्रसन होय आप विमाण में विराजे अर विमाण आकाश मार्ग चाल्यो सो अनुक्रम से क्षेत्र भोग भूमि का देश के उपरि विमारण चल्या जाय छां, सो स्वामो के सामायक का समय या गया सो सामायिक करती बखत पीछी हाथन से गिर पड़ी अर पवन का वेग अत्यन्त लाग्या ही तदि स्वामी कही अब हमारा गमन अगारी नहीं काहे, ते मुनिराज का बाना विना मुनिराज की पिछानी नाहीं तदि देव पीछी हेरण कुं बड़ा यतन किया तदि पीछी पाई नहीं, अर गृध्र पक्षी जाति के जिनावर की पांखडी हुती सो वै अति कोमल तिनकू भैली करि उनकी पीछी आकार बनाय श्री मुनिराज कुं सौंपी तदि आप कोमल जाणि अर धर्म का कारण करणे के निमित्त अंगीकार करि करि र अगाडी गमन करता भया । इस कारण से दूसरा नाम गृध्र पिछाचार्य प्रकट भया। अब विदेह क्षेत्र में जाय पहुंचे। श्रीमंदर स्वामी का समोसरण मानस्थंभादि विभूति युक्ति देखकरि प्रसन्न भये, आप अन्तरंग की सुधता धारी विमाण से उतरि भगवान् का समवसरण में प्रवेश किया अर सोमंदर स्वामी के तीन प्रदक्षिणा दे करि नमस्कार किया अर स्तुति करि अहो सर्वज्ञ तुम्हारी महिमा अगम्य है, अगोचर है, आप सकल वस्तु कौ सदी वही देखो हौर अाप जगत के गुरु हो आप परमेसुर हो, आपके नाम से अनेक जन्म के पाप प्रलय होय हैं आपका केवलज्ञान सर्व प्रति भासी है। आप पूज्याधिक हो आप ब्रह्म रूप हो, चतुर्मुख हो गणधरादिक देव भी तुम्हारे गुण गण कथन करते थाक गये, हमारि कहा गति प्राजि हमारा शरीर सफल भया आजि हमारी मोक्ष भई मानूं ऐसा मैं अानन्द मानं या कह करि भगवान् की गंध कूटी की कटनि उपरि देव बैठावते भये, काहे तेवा का शरीर पांच से धनुष का अर ये ६ हाथ काय सकारण, वैसे ही समय में चक्रधर पायो गंध कुटी कै उपर नजरि गई तदि हात भैले करि
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