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[ जैन धर्म का मौलिक इतिहास-भाग ४
पूर्वला कारण तै कुन्दकुन्द कुमार दीक्षा लेता भया। प्राचार्य तो देवलोक पधारे अर कुन्दकुन्द मुनिराज का मार्ग विशेष जान्या नहीं सो अपने गुरु स्थापना के निकट ही ध्यान करता भया सोयन का ध्यान के प्रभाव तै सिंह व्याघ्रादिक सांत भाव कं प्राप्त भया श्री स्वामी ऐसा ध्यान प्रगट भया तीन ज्ञान अगोचर श्री सीमंदर स्वामी पूर्वले विदेह क्षेत्र का राजा तिन का ध्यान स्वामी ने सरू कर्या । ग्रादि समवसरण की रचना विधिपूर्वक चित्त रूपी महल में बनाया वा के बीच गंध कुटी रच दीनी अर वारा सभा सहित रचना बनाय सिंहासन उपर च्यार अंगुल अन्तरीक श्री महाराजि श्री सीमंदर स्वामी कू विराजमान देख करि तत्काल श्री कुन्दकुन्द यतिराज नमस्कार करता भया। बस ही समय में विदेह क्षेत्र में श्री भगवान् मुनिराज कू धर्मवृद्धि दीनी तदि चक्रवादिक महंत पुरुषा कै बडो विस्मय उत्पन्न हुनो अवार कोई इन्द्रदेव मनुष्य में कोई भी पाया नहीं अर स्वामी धर्मवृद्धि दीनी ता का कारण कह्या ।। तदि महापद्म चक्रधर आदि सब ही राजा उठ करि स्वामी कू नमस्कार करि पूछते भये भो सर्वज्ञ देव ! या धर्मवृद्धि पाप कुण कं दीनी ये वचन सुरिण करि स्वामी दिव्य ध्वनि से व्याख्यान किया हे महापद्म ! भरत क्षेत्र का प्रार्य खंड में रामगिर पर्वत के उपरि कुन्दकुन्द मुनिराज तिष्ठे हैं। उनमें अचावार मन वचन काया की सुधता करि र नमस्कार कीयो तदि धर्मवृद्धि दीनी है । ऐसा स्वामी का वचन सुरण करि सभी सभा के लोगन के उर में अाश्चर्य उपज्यो । भो भगवन् ! आपकी दिव्य ध्वनि पहली भले प्रकार हम सुनी हती ज्यो भरतादिक दश क्षेत्र में धर्म का मार्ग नाहीं अर पाखंडी बहुत है। जिन धर्म का नाम मात्र जानेगा नाहीं । अघ वीपरीत मार्ग में चालेगा, पाखंडी लोगों की मान्यता बहुत होयगी । गुरुद्रोही लोक हो जायगा। स्व-स्व कल्पित ग्रन्थ बांचेंगे। अनेक पाखंड रचेंगे। जिनराज का धर्म आज्ञा समान कू कहुं दीखेगा। पाखंडी का मठ जागि-जागि धावेगे । व्यन्तर आदिक कूदेव का चमत्कार प्रतिभासेगा स्व-स्व धर्म छोडिकरि सब ही लोक उन्मार्ग में धंसेंगे। अब आपके मुख ऐसा ऋद्धि धारक मुनिराज का नाम सुन्या सो हमारे बड़ा आश्चर्य है। तदि केवलि वर्णन करते भये ऐसा मुनिराज बिरले होय है। पाग्या का चिमत्कार समान आर्य खण्ड में चिमत्कार होयवो करेंगे, वे सुर्गवासी देव का जीव है। इहां सभा में रवि प्रभ सूर्यप्रभ देव हैं। तिनका वे पागले भव के भाई हैं। ऐसा शब्द होते दोय देव श्री भगवान् के निकटि आये नमस्कार करि सकल व्याख्यान पूछ्या अर मुनिराज का दर्शण करणे वास्ते रामगिर उपर पावते भये। जिस वखत देव आये ता समे में रात्रि थी तदि मुनिराज कुं नमस्कार करि र बैठ्या । मुनिराज बोल्या नहीं। अब उनका शिष्य विना ध्यान तिष्ठे छै तिनका दर्शन भया । उन से ही बतलावरणा होत भई । अर देर देव ने कही श्रीमंदर स्वामी तुमकुधर्मवृद्धि दीनी तदि मैं अठै आया। अबे स्वामी बोलते नहीं सो हम भगवान् के समोसरण में ही पाछा जावां छां। या कहीर देव भगवान् के समोसरण में गये। अब प्रभातिक का समय हुआ। तदि प्रभाति का नमस्कार सब ही शिष्य करते भये अर रात्रि का समाचार श्रीमंदर स्वामी सम्बन्धी सर्व विधिपूर्वक मालुम करया ।
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