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________________ भूले बिसरे ऐतिहासिक तथ्य सागर के गहन तल में जिस प्रकार कई अनमोल मोती, बहुमूल्य रत्न और भाति-भांति की निधियां छिपी होती हैं, ठीक उसी प्रकार जैन इतिहास के प्रात्यन्तिक महत्त्व के ऐतिहासिक तथ्य विस्मृति के गर्भ में छुपे पड़े हैं। जिस प्रकार साहसी गोताखोर गहरी डुबकियां लगाकर अथाह समुद्र के तल से समय-समय पर उन अमूल्य निधियों को खोज निकालते हैं, ठीक उसी प्रकार विस्मृति के गहन गर्भ रूपी समुद्र में छिपे इतिहास के अलभ्य ऐतिहासिक तथ्यों को कोई बिरले ही शोधप्रिय विद्वान् प्रकाश में लाने में सफलकाम होते हैं। इस युग के महान् अध्यात्मयोगी जैनाचार्य श्री हस्तिमलजी महाराज ने सदियों से विलुप्त माने जाते रहे जैन इतिहास को गहन शोध के अनन्तर जैन जगत् के समक्ष रक्खा है। ईस्वी सन् १९८५ तद्नुसार वीर निर्वाण सम्वत् २५११-१२ के भोपालगढ़ चातुर्मासावास काल में प्राचार्यश्री ने एक ऐसो ऐतिहासिक कृति को खोज निकाला है जो दिगम्बर परम्परा के महान् प्राचार्य कुन्दकुन्द स्वामी के समय के सम्बन्ध में अद्यावधि चली आ रही विवादास्पद गुत्थी को सुलझाने में सम्भवतः पर्याप्त मार्गदर्शिका बन सकती है। प्राचार्य श्री कुन्दकुन्द के समय के सम्बन्ध में विद्वानों के विभिन्न अभिमत हैं, जो प्रायः सभी एकमात्र अनुमानों पर ही आधारित हैं। प्राचार्य श्री कुन्दकुन्द के सुनिश्चित समय को बताने वाला अद्यावधि एक भी प्रामाणिक उल्लेख अथवा कोई ठोस आधार उपलब्ध नहीं है। शोधरुचि प्राचार्यश्री ने प्राचीन हस्तलिखित पत्रों के पुलिन्दे में से “अथ प्रतेष्ठा पाठ लिख्यते" शीर्षकवाली जो एक प्रति खोज निकाली है, उसमें दिगम्बर परम्परा के अनेक भट्टारकों एवं प्राचार्यों के समय के सम्बन्ध में प्रकाश डालने के साथ दिगम्बर परम्परा के महान् प्राचार्य कुन्दकुन्द स्वामी के जीवनवृत्त पर निम्नलिखित रूप में विस्तृत विवरण उपलब्ध हुआ, जो इतिहास में अभिरुचि रखने वाले विज्ञों के लिये यहां अक्षरशः उद्ध त किया जा रहा है । ............ सम्वत् ७७० के साल वारानगर में श्री कुन्दकुन्दाचार्य मुनिराज भये तिनका व्याख्यान करजे छ। कुन्द सेठ कुन्दलता सेठाणी के पांचवां स्वर्ग को देव चय करि गर्भ में आये ति दिन सु सेठ का नांव प्रसिद्ध हुआ । काहै ते पुष्पादिक की वर्षा का कारण से नव महिना पीछे पुत्र का जन्म भया ता समय में श्वेताम्बरन की आम्नाय विसेस होय रही, दिगम्बर सम्प्रदाय उठ गई। एक जिनचन्द मुनि रामगिर पर्वत में रहै ताका दर्शन सेठजी करवो करै सोभाग्ये पुत्र आठ वर्ष का हुआ पर उठीने श्री प्राचार्य का प्रायुकर्म नजीके आया वे ॥ कुमार नित्य प्रावे छा सो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002074
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1995
Total Pages880
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
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