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जैन धर्म का मौलिक इतिहास-भाग ४
हस्तलिखित ग्रन्थों एवं प्रचीन साहित्य का प्रश्न है, जैन धर्मावलम्बी वस्तुतः अन्यान्य सभी धर्मावलम्बियों की अपेक्षा अत्यधिक सम्पन्न - अत्यधिक समृद्ध है। किसी भी शोधप्रिय विद्वान् से यह तथ्य छिपा नहीं कि विभिन्न प्रान्तों की एपिग्राफिकाओं, एपीग्राफिका इंडिका के विशाल ग्रन्थों, एशियाटिक रिसर्च सोसायटी आदि शोधपरक संस्थाओं के जरनलों एवं पुरातात्विक शोधग्रन्थों में प्रस्तुत की गई सम्पूर्ण प्राचीन ऐतिहासिक सामग्री में लगभग सत्तर से अस्सी प्रतिशत तक सामग्री जैनधर्म से सम्बन्धित है।
सन् १९३२ में अजमेर नगर में हुए वृहत् साधु सम्मेलन के जैन इतिहास निर्माण विषयक निर्णय के अनन्तर प्राचार्यश्री ने जैन इतिहास से सम्बन्धित सामग्री की खोज एवं उसके संकलन का कार्य बड़ी तत्परता से प्रारम्भ कर दिया। सन् १९६५ में बालोतरा चातुर्मासावासावधि में जैन इतिहास के निर्माण के निश्चय के साथ-साथ इतिहास समिति के निर्माण के अनन्तंर तो प्राचार्य श्री ने बालोतरा से गुजरात की ओर विहार कर अहमदाबाद के अति विशाल ज्ञान भंडारों से, पाटण के विश्व विख्यात भंडार से, बड़ौदा के ज्ञान भंडार, बड़ौदा विश्वविद्यालय के पुरातत्व संग्रहालय से, गुजरात, काठियावाड़, सौराष्ट्र और कच्छ की खाड़ी तक के अनेक क्षेत्रों में अवस्थित ज्ञान भंडारों में अथक परिश्रम पूर्वक शोध करने के साथसाथ उनमें से जैन इतिहास से सम्बन्धित सामग्री का संकलन किया।
तदनन्तर बालू के टीलों, एवं रेतीले धोरों की धरा मरुधरा से लेकर दक्षिण सागर के तटवर्ती नगर मद्रास तक अप्रतिहत विहार कर आचार्य श्री ने अजमेर, मेरवाड़ा, टोंक, मेवाड़, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, कर्णाटक, आन्ध्र एवं तमिलनाडु प्रदेशों में गहन खोज के पश्चात जैन इतिहास से सम्बन्धित सामग्री का संकलन किया।
___ आमरु-सागरान्ता आर्यधरा के विशाल भू-भाग में ऐतिहासिक सामग्री की शोध के लिये किये गये इस भगीरथ प्रयास तुल्य अभियान में प्राचार्य श्री को ऐतिहासिक महत्व की विपुल सामग्री उपलब्ध हुई । उस महत्वपूर्ण सामग्री का उपयोग प्रस्तुत इतिहासमाला के गुम्फन, आलेखन में किया गया। तथापि यह शोध अभियान की इतिश्री नहीं है और न होगी।
इस भगीरथ प्रयास के उपरान्त भी अभी तक जैन इतिहास से सम्बन्धित विपुलतम महत्वपूर्ण सामग्री यत्र-तत्र बिखरी एवं छिपी पड़ी है, जिसमें हमारे अतीत के अनमोल ऐतिहासिक तथ्य छिपे पड़े हैं। उदाहरणस्वरूप तृतीय भाग में दिये गये इतिहास की कालावधि के एक बड़े ही ऐतिहासिक महत्त्वपूर्ण तथ्य पर प्रकाश डालने वाली एक ऐतिहासिक हस्तलिखित प्रति प्राचार्यश्री द्वारा खोज निकाली गई है। उस ऐतिहासिक तथ्य को यहां "भूले बिसरे ऐतिहासिक तथ्य' शीर्षक के नीचे दिया जा रहा है :
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