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सामान्य श्रुतधर काल खण्ड २ ]
महाराजा कुमारपाल
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सामग्री प्रस्तुत की गई और प्राचार्य श्री ने शिव पुराण में निर्दिष्ट विधि के अनुसार आह्वान न, कवगुण्ठन, मुद्रा, मन्त्र आदि का उच्चारण करते हुए परिपूर्ण विधि के साथ उस सामग्री से शिव का अर्चन किया और अन्त में निम्नलिखित दो श्लोकों का तारस्वर से घनरव गम्भीर, मृदु मंजुल, सम्मोहक वाणी में उच्चारण करते हुए अपार जन समूह के समक्ष साष्टांग प्रणाम किया :
“यत्र तत्र समये यथा तथा योऽसि सोऽस्यभिधया यया तया । वीतदोषकलुष स चेद्भवा
न्नेक एव भगवन्नमोऽस्तु ते ।।१।। भवबीजांकुरजनना रागाद्याः क्षयमुपागता यस्य । ब्रह्मा वा विष्णुर्वा महेश्वरो (हरो जिनो) वा नमस्तस्मै ॥२॥
अर्थात् हे भगवन् ! विभिन्न दर्शनों द्वारा विभिन्न समय में आपको चाहे किन्हीं विभिन्न नामों से अभिहित किया गया हो पर यदि आप समस्त दोषों और कर्मकलुष से पूर्णतः विनिर्मुक्त हैं तो आप वे ही विश्ववन्द्य भगवान् हैं। मैं आपको नमस्कार करता हूं। जन्म मरण के अंकुर स्वरूप रागद्वेषादि दोष जिनके मूलतः नष्ट हो चुके हैं, उन भगवान् को मैं भक्तिसहित नमन करता हूं, चाहे उन का नाम ब्रह्मा हो, विष्णु हो, सोमेश्वर हो अथवा जिनेश्वर ।"
__ आचार्य श्री हेमचन्द्रसूरि द्वारा शिव की पूजा के पश्चात् महाराज कुमारपाल ने बृहस्पति द्वारा बताई हुई विधि के अनुसार सोमेश्वर की पूजा की और तत्काल राजा ने धर्मशिला पर तुला पुरुष, गजदान आदि अनेक प्रकार के महादान दिये । तत्पश्चात् कपूर से शंकर की आरती उतार कर कुमारपाल ने वहां उपस्थित राज्याधिकारियों एवं अन्य सभी लोगों को थोड़े समय के लिये बाहर रहने का निर्देश दिया। सभी लोगों के यहां तक कि पुजारियों तक के बाहर चले जाने के अनन्तर कुमारपाल ने प्राचार्य श्री हेमचन्द्रसूरि के साथ मन्दिर के गर्भगृह में प्रवेश किया। वहां बैठकर अतीव विनम्र स्वर में निवेदन करना प्रारम्भ किया- "हे प्राचार्य देव ! संसार में महादेव के समान और कोई देव नहीं है । न कोई मेरे समान राजा है । और न आपके समान कोई महर्षि । पूर्वोपार्जित पुण्य के प्रताप से ही यहां इस प्रकार तीनों का संयोग मिला है। सभी दर्शन अपने-अपने आराध्यदेव का एक दूसरे से भिन्न अपनी-अपनी मान्यता के अनुसार स्वरूप बताते हैं । इसलिये वस्तुतः इन सब दर्शनों ने मिलकर परमेश्वर के स्वरूप को संदिग्ध कर दिया है। इसीलिए इस तीर्थ स्थान में मैं अपने आन्तरिक उद्गार आपके समक्ष प्रकट करते हुए आपसे प्रार्थना करता हूं कि आप उस सत्य देवाधिदेव भगवान् का और उस धर्म का स्वरूप मुझे बताइये जो वस्तुतः मुक्ति देने वाला है।"
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