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सामान्य श्रुतधर काल खण्ड २ 1
महाराजा कुमारपाल
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के हौदे पर बैठे हुए मल्लिकार्जुन को ललकारते हुए कहा :- " पहले तुम मुझ पर प्रहार करो और अपने इष्टदेव का स्मरण कर परलोक प्रयारण के लिए तैयार हो ।” मल्लिकार्जुन ने जैसे ही उस पर अपनी गदा का प्रहार करने को गदा उठाई, अम्बड़ ने अपनी तीक्ष्ण तलवार की धार के प्रहार से उसके सिर को पृथ्वी पर गिरा दिया। मल्लिकार्जुन के मस्तक को भूलुंठित होते देख कोंकरण की सेना के पैर उखड़ गये । वह रणांगरण से पलायन करने लगी। गुर्जर सेना के योद्धाओं ने अपने भीषण प्रहारों से शत्रु सेना को नष्ट-भ्रष्ट एवं छिन्न-भिन्न कर दिया | कोंकण की सेना को पराजित करने के पश्चात् सेनापति अम्बड़ ने कोंकणराज की राजधानी में प्रवेश किया और पूरे कोंकण राज्य में महाराज कुमारपाल की प्राज्ञा प्रसारित कर कोंकरण के राज्य कोष पर अधिकार कर लिया । सेनापति अम्बड़ ने मल्लिकार्जुन के मस्तक को स्वर्ण के पत्तों से वेष्टित कर कोंकरण की बहुमूल्य अपार धनराशि को साथ ले राहिल्लपुर पट्टण की ओर प्रस्थान किया । कतिपय प्रयाणों के अनन्तर वह अणहिल्लपुर पहुंचा और राजसभा में उपस्थित हुआ । अपने ७२ सामन्तों द्वारा सेवित महाराज कुमारपाल के सिंहासन के सम्मुख उपस्थित हो अम्बड़ ने मल्लिकार्जुन का सिर उनके चरणों पर रखते हुए अपना सिर काया । कोंकरण देश से लाई हुई अपार धनराशि भी सेनापति अम्बड़ ने अपने . स्वामी को भेंट की, जिसमें सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण अलभ्य अनमोल निम्नलिखित वस्तुएं थीं
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(१) शृङ्गारकोटि नामक साड़ी, (२) माणिक्य नामक दुशाला, (३) पापक्षयकर नामक हार, (४) संयोगसिद्धि नामक विषापहारिरणी मुक्ताशुक्ति, ( मोती सहित सीप), (५) बत्तीस स्वर्ण कलश, (६) मोतियों से भरे कुम्भ, (७) एक चार दांतों वाला हाथी, (८) १२० स्वर्णपात्र, (६) १४ करोड़ स्वर्ण मुद्राएं और अपार द्रव्य ।
अम्बड़ ने इन सब महार्घ्य वस्तुओं और मल्लिकार्जुन के सिर से अपने स्वामी कुमारपाल के चरणों की पूजा की ।
चालुक्यराज कुमारपाल अम्बड़ के शौर्य से बड़े प्रसन्न हुए और उन्होंने उसे अनेक गांवों की जागीर प्रदान कर सम्मानित किया ।
एक समय जबकि महाराज कुमारपाल उज्जयिनी के अपने राजप्रासाद में रहते हुए, कुछ समय तक वहाँ रहने के अनन्तर अपने अधीनस्थ मालव राज्य की व्यवस्था को दृढ़तर एवं अधिकाधिक लोककल्याणकारी बनाने हेतु मालव राज्य के विभिन्न क्षेत्रों में अपने सैनिक स्कन्धावार प्रायोजित कर प्रजा के अभाव - अभियोगों की सुनवाई कर रहे थे, उस समय अनहिल्लपुर पत्तन में आचार्यश्री हेमचन्द्रसूरि की माता साध्वीमुख्या महत्तरा पाहिनी ने अपनी आयु का अवसान काल देख आलोचना
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