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________________ ४०६ । [ जैन धर्म का मौलिक इतिहास-भाग ४ वे दृष्टि उठाकर राजसभा में उपस्थित अपने सामन्तों की ओर देखने लगे । 'अम्बड़' नामक मन्त्री ने अपनी ओर गुर्जरराज के दृष्टि-निक्षेप के होते ही अपने दोनों हाथ अंजलिबद्ध कर ऊपर की ओर उठा दिये । यह देखकर कुमारपाल को बड़ा आश्चर्य हुआ और सभा के विसर्जित होते ही अम्बड़ मन्त्री को एकान्त में अपने पास बुलाकर सभा में उस प्रकार अंजलिबद्ध हाथ ऊपर उठाने का कारण पूछा। अंबड मन्त्री ने उत्तर में निवेदन किया :-"राज राजेश्वर ! कोंकण के मागध के मुख से मल्लिकार्जुन के लिये प्रयुक्त 'राज-पितामह' शब्द को सुनते ही आपके नेत्रों में लाली-सी दौड़ गई। आपने सामर्ष अपने सामन्त समूह की अोर दृष्टिनिपात किया। उस समय आपके दृष्टिनिक्षेप का मैंने यही अर्थ समझा कि आप यही जानना चाहते थे कि आपकी राज सभा में क्या कोई ऐसा सुभट विद्यमान है, जो मिथ्याभिमानी मल्लिकार्जुन का सिर काटकर मेरे सम्मुख उपस्थित करे। मैंने आपके उस मौन आदेश को स्वीकार एवं शिरोधार्य कर आपके आन्तरिक अभिप्राय की पूत्ति के लिये अपने अंजलिबद्ध दोनों हाथ ऊपर उठाये।" कुमारपाल अपने इंगितज्ञ मन्त्री अम्बड़ के उत्तर से बड़ा प्रसन्न हुआ । उसने मन्त्री अम्बड़ को अपनी एक विशाल चतुरंगिणी सेना के साथ कोंकण राज्य पर आक्रमण करने के लिये विदा किया । मन्त्री अम्बड़ ने प्रयाण पर प्रयाण करते हुए अपनी सेना के साथ कल्विणी नदी को पार कर उसके दूसरे तट पर अपनी सेना का पड़ाव डाला। गुर्जर सेना के अपनी सीमा में प्रवेश का समाचार सुनते ही मल्लिकार्जुन ने अपनी सशक्त सेना के साथ गुर्जर राज्य की सेना पर आक्रमण कर दिया। दोनों सेनाओं के बीच भीषण संग्राम हुना किन्तु शीघ्र ही गुर्जर सेना में भगदड़ मच गई और अम्बड़ मन्त्री मल्लिकार्जुन से परास्त हो गुर्जर राज्य की ओर लौट पड़ा । उसने अपनी पराजित सेना को साथ लिये अणहिल्लपुर पट्टण से थोड़ी दूर अपनी सेना का एक नदी के किनारे पड़ाव डाला। उसने काले कपड़े एवं काला ही छत्र धारण किया और कृष्ण मुख किये वहीं रहने लगा। कुमारपाल ने अम्बड़ की सेना के सन्निवेश में उसे इस वेष में देखकर पूछा कि यहां सेना का पड़ाव क्यों डाला है ? अपना कृष्ण मुख किये कृष्ण वेष में मन्त्री अम्बड़ ने सांजलि शीश झुका उत्तर दिया :--"पृथ्वीनाथ ! कोंकरण से पराजित हो लौटने के कारण आपका यह सेनापति लज्जित हो यहीं पड़ा है।" कुमारपाल उसके उत्तर से प्रसन्न हो कहने लगे :- "शौर्यशाली सेनापति के लिये इस प्रकार की लज्जा भी बहुत बड़ा आभूषण है।" कुमारपाल ने अनेक रणसौंडीर सामन्तों और एक बड़ी शक्तिशाली सेना को अम्बड़ के सेनापतित्व में देकर उसे पुन: कोंकण-विजय का आदेश दिया। इस बार सेनापति अम्बड़ ने कोंकण राज्य की सीमा में विद्युत् वेग से आगे बढ़कर कोंकण की सेना पर बड़ा भीषण आक्रमण किया। अपने पट्टहस्ति-रत्न पर आरूढ मल्लिकार्जुन अपनी सेना का नेतृत्व कर रहा था । अम्बड़ ने उसे देखते ही अपने अश्व को एड लगाकर मल्लिकार्जुन के हाथी की ओर वायु वेग से बढ़ाया । मल्लिकार्जुन के हाथी के पास पहुंचते ही सेनापति अम्बड़ ने अपने घोड़े की पीठ से छलांग लगाकर कोंकणराज के हाथी के दांतों पर पैर रख हाथी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002074
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1995
Total Pages880
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
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