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________________ सामान्य श्रुतधर काल खण्ड-२ ] महाराजा कुमारपाल [ यह सूर्य और चन्द्र विद्यमान रहेंगे, तब तक कलहपंचानन नामक हस्ती और इसका संचालक सामल कभी राजद्रोह के पाप का कलंक कालिमापूर्ण काला टीका ग्रपने भाल पर नहीं लगने देंगे । पर वास्तविकता यह है कि शत्रुओंों की हस्तिसेना के एक हाथी के होदे में वाहडकुमार एक वाद्य यन्त्र के तार से इस प्रकार की ध्वनि प्रकट कर रहा है, जिसे सुनकर हाथी रणांगण से भाग खड़े होते हैं ।" यह कहते हुए सामल ने अपने उत्तरीय के दोनों पल्लों से कलह पंचानन हाथी के दोनों कर्ण-रन्धों को भली-भांति बन्द कर उसे शत्रु राजा के हाथी से भिड़ा दिया। दोनों हाथियों के भिड़ जाने तक वाहडकुमार को यही विश्वास था कि चौलिंग नामक हस्ती का हस्तिप जिसे मैंने लंचादानपूर्वक अपने पक्ष में कर लिया है, वही राजा के हाथी को लेकर मेरे हाथी के पास आया है । इस प्रकार विचार कर वाहड ने नंगी तलवार हाथ में लिये गुर्जरेश कुमारपाल के सिर को धड़ से पृथक् कर देने के उद्देश्य से अपने हाथी के हौदे से कलह पंचानन हाथी के हौदे पर अपना एक पैर रख दिया । वह दूसरा पैर उठाये इससे पहले ही सामल ने विद्युत् वेग से कलह पंचानन हस्ती को पीखे की ओर गतिमान कर दिया और दोनों सेनाओं के देखते ही देखते वाहडकुमार रणांगण में पृथ्वी पर आ गिरा । कुमारपाल के अंगरक्षक पदाति सैनिकों ने वाहडकुमार को तत्काल पकड़कर बन्दी बना लिया । तदनन्तर कुमारपाल ने सपादलक्ष - राज को रण के लिये ललकारा । कुमारपाल को लक्ष्य कर अपने धनुष की प्रत्यंचा से सांभर नरेश ‘आनक' बारण को छोड़ना ही चाहता था कि कुमारपाल ने अपने शर प्रहार से उसे खंड-विखंडित कर दिया और सिंह की भांति छलांग मार कर शत्रु राजा 'नक' को उसके हाथी के हौदे से अपने हाथी के हौदे पर ला पटका । तत्काल सपादलक्ष नरेश को बन्दी बना "जीत लिया, जीत लिया" इस प्रकार का सिंहनाद करते हुए कुमारपाल ने अपने स्वामी भक्त सैनिकों और अंगरक्षकों की टुकड़ियों के साथ शत्रु सेना पर भयंकर आक्रमण किया । अपने राजा के बन्दी बना लिये जाने के कारण सपादलक्ष की सेना का मनोबल टूट चुका था। इस अप्रत्याशित भीषण आक्रमण से उसमें तत्काल भगदड़ मच गई। कुमारपाल ने तत्काल शत्रु के कोषागार, शस्त्रागार, अनेक हस्तियों और बहुत बड़ी संख्या में घोड़ों को अपने अधिकार में कर लिया । इससे गुर्जर सेना का उत्साह बढ़ा । विद्रोही सेना नायकों ने भी अपने विद्रोह भाव को भुलाकर भागती हुई शत्रु सेना का पीछा कर शत्रु के अस्त्र, शस्त्र और अश्वों को अपने अधिकार में कर लिया । युद्ध में विजय प्राप्त कर लेने के पश्चात् कुमारपाल ने विद्रोही सामन्तों और सेना नायकों को कड़ा दंड दे उनके स्थान पर सच्चे देशभक्त एवं स्वामि भक्तों Sat नियुक्त किया । ४०५ एक दिन महाराज कुमारपाल की राज्य सभा में कोंकरण नरेश मल्लिकार्जुन के 'मागध' (बन्दी) ने अपने स्वामी की प्रशंसा में उसे 'राज पितामह' के विरुद से अभिहित किया । महाराज कुमारपाल उसके इस विरुद को सहन न कर सके और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002074
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1995
Total Pages880
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
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