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________________ ४०४ । [ जैन धर्म का मौलिक इतिहास-भाग ४ प्रमुख अधिकारियों, कर्मचारियों, राज भवन के परिचारकों एवं राज्य के विभिन्न गण्यमान्य प्रमुख नागरिकों पर पर्याप्त प्रभाव था। इसके साथ ही साथ वाहडकुमार महाराज सिद्धराज जयसिंह का कृपापात्र वरद पुत्र होने के कारण गुर्जर राज्य के अनेक रहस्यों से भी अवगत था । उसे कुमारपाल का गुर्जर राज्य के सिंहासन पर आरूढ होना सह्य नहीं हुआ । अतः उसने मन ही मन निश्चय किया कि वह येनकेन-प्रकारेण कुमारपाल को भीषण युद्ध में उलझाकर उसे राज्यच्युत करे। इस प्रकार विचार करने के अनन्तर वह सपादलक्ष (वर्तमान सांभर) राज्य के नरेश का सेनापति बन गया। सपादलक्ष के राज्य की सेना को अभिवृद्ध, सुगठित, युद्ध कला कौशल में निष्णात, शस्त्रास्त्रों से सुसज्जित एवं शक्तिशाली बनाकर उसने कुमारपाल से युद्ध प्रारम्भ करने से पहले गुर्जर राज्य के प्रायः सभी सामन्तों, अनेक सेना-नायकों आदि को बड़ी-बड़ी धनराशियां घूस के रूप में प्रदान कर गुप्त रूप से अपने पक्ष में कर लिया। इस प्रकार की व्यवस्था करने के अनन्तर "हमारी जीत सुनिश्चित है", "हम कुमारपाल को अवश्यमेव पराजित कर उसे बन्दी बना सकेंगे" इस प्रकार का दृढ़ विश्वास लिये उसने सपादलक्ष राज्य के नरेश और उसकी विशाल चतुरंगिणी सेना को साथ लेकर गुर्जर राज्य की सीमाओं पर पड़ाव डाला । चरों के मुख से यह सुन कर कि सपादलक्ष नरेश और उसकी सेनाओं के साथ वाहडकुमार गुर्जर राज्य की ओर बढ़ रहा है, कुमारपाल ने भी अपनी चतुरंगिणी विशाल सेना को युद्ध हेतु सुसज्जित कर अपनी सीमा पर पड़ाव डाला। दोनों ओर की सेनाओं ने युद्ध के लिये सुसज्जित हो व्यूह रचना की। शत्रु की सेना गुर्जर राज्य की सीमा में प्रवेश करे, इससे पहले ही ३६ प्रकार के आयुधों के विपुल संचय से युक्त कलह पंचानन नामक हस्ति की पीठ पर कुमारपाल का राजसिंहासन प्रतिष्ठापित कर हस्ति संचालन कला में लब्ध प्रतिष्ठ शामल नामक हस्तिप (महावत) ने कुमारपाल के समक्ष उस हस्तिरत्न को प्रस्तुत किया। महाराज कुमारपाल तत्काल उस हस्ति पर आरूढ होकर सिंहासन पर बैठ गया। अपने सेनानायकों एवं सामन्तों की ओर दृष्टिनिपात करते ही उनकी भावभंगियों एवं युद्ध के लिये अनुत्सुकता के भावों से उसने समझ लिया कि शत्रु ने उनको देशद्रोही बनाकर अपने पक्ष में कर लिया है। उसने तत्काल सामल हस्तिप को आज्ञा दी कि वह स्वयं ही सबसे आगे रहकर शत्रु के साथ युद्ध करेगा, इसलिए वह कलहपंचानन हाथी को सपादलक्ष राज के हाथी की ओर बढ़ाये । सामल ने कलहपंचानन को गुर्जर सेना के शीर्षस्थ स्थान पर लाकर ज्योंही शत्रु राजा के हाथी की ओर बढ़ने की प्रेरणा दी कि हाथी पीछे की ओर सरकने लगा । हस्तिप ने अनेक बार अंकुश मारे। हाथी को आगे बढ़ाने के लिये सभी प्रकार के सम्भव प्रयत्न किये किन्तु हाथी ने आगे की ओर एक डग तक भी नहीं रक्खा । कुमारपाल ने क्रुद्ध हो सामल को सम्बोधित करते हुए कहा :-"क्यों सामल ! तू भी इन मातृभूमिद्रोही गुर्जर सेना के सेनानियों की भांति शत्रु पक्ष में जा मिला है ?” शामल ने हाथी को आगे की ओर बढ़ाने का एक बार और प्रबल प्रयास करते हुए कुमारपाल से कहा :--"पृथ्वीनाथ ! जब तक यह पृथ्वी और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002074
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1995
Total Pages880
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
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