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________________ सामान्य श्रुतधर काल खण्ड २ ] महाराजा कुमारपाल [ ४०३ अपने उत्तमांगों से पृथ्वी का स्पर्श करते हुए कुमारपाल को नमस्कार किया । राज्य में सर्वत्र कुमारपाल की राजाज्ञा प्रसारित करवा दी गई । कुमारपाल के राज्याभिषेक के अनन्तर महाराज सिद्धराज जयसिंह की राजकीय सम्मान के साथ सभी प्रकार की और्ध्वदेहिक क्रियाएं सम्पन्न की गई । पुरोहितों, ब्राह्मणों और भिक्षुकों को विपुल दान दिया गया । अनेक प्रकार के पुण्य कार्य किये गये । महाराजा कुमारपाल राज्यारोहण से पूर्व भारत के विभिन्न भागों में एवं अनेक राज्यों में परिभ्रमण कर चुका था, अनेक प्रकार के कटु अनुभव भी उसे हो चुके थे, विभिन्न राज्यों की प्रजा के प्रभाव अभियोगों आदि की दशा को उसने प्रत्यक्ष रूप से देखा था, इस प्रकार की अनुभूतियों से मेधावी कुमारपाल की मेधा शक्ति और भी अधिक निखर चुकी थी । उसने शासन सूत्र सम्भालते ही राज्य के सब कार्यों को स्वयं अपनी सीधी देखरेख में करना प्रारम्भ किया । शासन सूत्र के संचालन की सभी गतिविधियों पर कुमारपाल की दूरदर्शी कड़ी दृष्टि के कारण राज्य के प्रायः सभी प्रमुख अधिकारीगरण थोड़े ही दिनों में उससे मन ही मन रुष्ट हो उसकी हत्या करने के प्रपंच रचने लगे । कुमारपाल के पुण्य - प्रताप से किसी स्वामिभक्त वयोवृद्ध अधिकारी ने कुमारपाल के समक्ष उसकी हत्या के षडयन्त्र की जानकारी रख दी । कुमारपाल ने तत्काल उन सब षडयन्त्रकारियों को चुन-चुन कर एक ही रात में यमधाम पहुंचा दिया । कुमारपाल के इस प्रकार के कठोर अनुशासन का यह परिणाम निकला कि सभी अधिकारी, सभी प्रकार की षडयन्त्रकारी प्रवृत्तियों से कोसों दूर रहकर प्रगाढ़ स्वामिभक्ति और अटूट देशभक्ति के साथ शासन और शासित प्रजा की सेवा में अत्यन्त संवेदनशीलता के साथ निरत रहने लगे । महाराज कुमारपाल ने सिंहासनारूढ़ होते ही मन्त्रीश्वर उदयन के पुत्र वाग्भट्टदेव को अपने महामात्य पद पर नियुक्त किया और प्रालिग नामक कुम्हार को चित्रकूट के पास सात सौ गांवों का अधिपति बना दिया । उसके पारिवारिक जनों को क्षत्रियों के समकक्ष सम्मान प्रदान कर अपने वंश के 'प्रधान' पद पर नियत किया। इस प्रकार की "प्रधान" जातियां आज भी राजस्थान के विभिन्न भागों के क्षत्रियों में उपलब्ध होती हैं। जिन किसानों ने कटीले वृक्षों की कंटीली शाखाओं के ढेर के नीचे कुमारपाल को छिपाकर रखा था, उन किसानों को कृतज्ञ शिरोमणि कुमारपाल ने अपने अंगरक्षकों के पद पर प्रतिष्ठित किया । इस प्रकार विशाल गुर्जर साम्राज्य के शासनसूत्र को अपने हाथ में सम्भालने के स्वल्प काल पश्चात् ही कुमारपाल ने अपने राज्य को निष्कंटक बना लिया । उदयन देव के 'वाहड' नामक पुत्र को महाराज जयसिंह ने अपने जीवन के संध्याकाल में एक प्रकार से अपना पुत्र मान लिया था । वाहड कुमार का राज्य के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002074
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1995
Total Pages880
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
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