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[ जैन धर्म का मौलिक इतिहास भाग ४
"अभी थोड़ी ही देर पहले महाराज सिद्धराज जयसिंह ने परलोक के लिये प्रयाण कर दिया है । अभी तक इस सूचना को गुप्त रखा गया है । तुम इस समय शान्ति से सो जाओ। प्रातःकाल महाराज के अन्तिम संस्कार से पूर्व ही चालुक्य राजवंश के परम्परागत नियम के अनुसार राज्याभिषेक के महत्त्वपूर्ण कार्य का निष्पादन करना है।" यह कहकर कान्हडदेव अपने शयनकक्ष में चले गये । कुमारपाल भी एक कक्ष में शय्या पर लेट गया। कुछ क्षणों तक उसके अन्तर्मन में अनेक प्रकार के विचार आते रहे किन्तु उसे उपरिवरिणत दो भविष्यवाणियों पर और गूर्जर शासन तन्त्र के प्रभावशाली सामन्त अपने बहनोई कान्हडदेव पर तथा अपने पौरुष पर अटल प्रास्था थी । अतः वह शीघ्र ही प्रगाढ़ निद्रा में मग्न हो गया।
प्रातःकाल सूर्योदय से पूर्व ही कान्हडदेव ने अपनी सुसज्जित सेना सहित कुमारपाल को साथ लेकर राजभवन में प्रवेश किया। राजभवन में पहुंचने के पश्चात् कान्हडदेव ने राज्य के महामात्य, अन्य अमात्यगण, सामन्तगरण एवं प्रमुख राजमान्य नागरिकों के समक्ष राज्याभिषेक की पूरी तैयारी करवाई। कान्हडदेव ने उपस्थित सामन्त, मन्त्री एवं मान्य नागरिकवृन्द को सम्बोधित करते हुए कहा-"इस अतिविशाल एवं महान् शक्तिशाली गुर्जर साम्राज्य के भार को वहन करने में कौन सक्षम है ? इसकी परीक्षा कर ली जाय ?" वहां उपस्थित सभी प्रमुख पुरुषों ने मौन इंगित से कान्हडदेव के कथन के प्रति अपनी सहमति प्रकट की। राज सिंहासन पर आरूढ़ होने के प्रत्याशी एक कुमार को पट्ट पर बैठने का कान्हडदेव ने संकेत किया। पट्ट पर बैठते समय उस कुमार का न केवल उत्तरीय अपितु सभी वस्त्र अस्त-व्यस्त हुए देख कान्हडदेव ने उसे हाथ पकड़ कर उठाया और एक ओर बैठने का संकेत किया । तदनन्तर दूसरे प्रत्याशी कुमार को कान्हडदेव ने पट्ट पर बैठने का निर्देश दिया। उस कुमार ने पट्ट पर बैठकर अपने दोनों हाथ जोड़कर सिर को झुका दिया । हठात् वहां उपस्थित सामन्तादि प्रमुख पुरुषों के कण्ठों से ये स्वर फूट पड़े-"यह यशस्वी गुर्जर राज्य वंश के उन्नत भाल को नीचा कर देगा।" कान्हडदेव ने हाथ पकड़ कर उस दूसरे प्रत्याशी को भी पट्ट से उठा दिया और कुमारपाल को सिंहासन पर आसीन होने का निर्देश दिया । कुमारपाल तत्काल गरुड की भांति वेग से सिंहासन पर सभी भांति सुसंयत हो अपने उत्तमांग को राज राजेश्वर की भांति ऊपर उठाये हुए बैठ गया और अपनी तलवार की मूठ को अपने दक्षिण करके वज्रपाश में आबद्ध कर उसे शनैः शनै: दोलित करने लगा। वहां उपस्थित सभी प्रमुखजनों ने सिर झुकाकर उसका राज्याभिषेक करने की सहर्षपूर्ण सम्मति प्रदान की। राज पुरोहित ने तत्काल मंगल पाठ के साथ कुमारपाल का गुर्जर साम्राज्य के राज सिंहासन पर राज्याभिषेक किया और साथ ही साथ विविध वाद्य ध्वनियों से समस्त वायु मण्डल गुजरित हो उठा। 'महामहिम गुर्जरेश्वर महाराज कुमारपाल की जय हो' आदि जयघोषों से समस्त गगनमण्डल प्रकम्पित हो उठा। कान्हडदेव आदि सभी सामन्तों और उपस्थित जनसमूह ने
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