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________________ सामान्य श्रुतधर काल खण्ड २ ] महाराजा कुमारपाल [ ३६५ कुमारपाल के मातृ पितृ पक्ष के सम्बन्ध में निम्नलिखित प्रकार का विवरण प्रस्तुत किया है : "चालुक्य महाराज जयसिंह के पितामह एवं परमार्हत महाराज कुमारपाल प्रपितामह पट्टनाधीश महाराज भीम के शासनकाल ( विक्रम सम्वत् १०३६ से विक्रम सम्वत् १०७८ तक ) में राहिल्लपुर पट्टण नगर में एक वैश्या रहती थी । उसने चौलादेवी नाम की एक बाला को अपने पास रखकर उसका पालन-पोषण किया । जब चौला देवी ने किशोर वय को पार कर यौवन की देहली पर प्रथम चरण रखा तो उसकी अभिभाविका वैश्या ने उसे वारवधु का कार्य प्रारम्भ करने के लिये बाध्य किया । बाला चौला देवी वस्तुतः रूप लावण्य सम्पन्ना अनुपम सुन्दरी थी । वह न केवल परम सुन्दरी ही थी अपितु कुलीन कन्याओं के अनेक गुणों से सम्पन्न थी । सुर बालाओं के सौन्दर्य को भी तिरस्कृत कर देने वाले उसके ग्रनिन्द्य सौन्दर्य एवं कुलवधुत्रों द्वारा प्रशंसनीय उसके गुणों की ख्याति दिग्दिगन्त में प्रसृत हो चुकी थी । अनेक श्रीमन्त चौलादेवी के सौन्दर्य और गुरणों पर मुग्ध हो उसके रूप लावण्य का रसपान करने हेतु उसकी अभिभाविका को विपुल धनराशि भेंट करने का प्रस्ताव कर चुके थे किन्तु चौला देवी ने अपनी अभिभाविका के समक्ष एक ऐसा प्रण (शर्त) रक्खा कि वह जब तक कोई प्रशस्त कुल का शौर्यशाली एवं रूपगुण सम्पन्न पुरुष जीवन भर के लिये उसकी अपनी अभिभाविका और उसके स्वयं के निर्वाह योग्य धनराशि देने का उसके समक्ष प्रस्ताव न रक्खे, तब तक वह इस प्रकार के निन्द्य कार्य को नहीं करेगी । उसकी अभिभाविक ने अनेक बार उसे इस प्ररण से डिगाने का भरसक प्रयास किया किन्तु चौला देवी अपने प्रण पर अटल रही । चालुक्यराज भीमदेव ने जब चौला देवी की यशोगाथा सुनी तो उसने अपने एक प्रति विश्वासपात्र एवं प्रभावशाली बालसखा के साथ चौलादेवी की प्रणपूर्ति के आश्वासन के रूप में अपनी एक सवा लाख मुद्रा के मूल्य की कटारी उसके पास बन्धक के रूप में भेजी । चौलादेवी, ऐसा प्रतीत होता है, पहले से ही महाराज भीम पर मुग्ध थी, सम्भवत: इसी कारण उस बन्धक स्वरूपा भीम की कटारी को उसने सहर्ष स्वीकार कर लिया । जिस दिन चौला देवी ने महाराज भीम द्वारा उसके पास भेजी गई कटारी को ग्रहण किया, संयोग से उसी दिन एक लम्बे सैनिक अभियान के लिये महाराज भीम को अपनी चतुरंगिणी सेना के साथ मालव प्रदेश की ओर प्रस्थान करना पड़ा । मालव प्रदेश में वे ऐसे विग्रहग्रस्त हुए कि दो वर्ष तक वे अणहिल्लपुर पट्ट नहीं लौट सके । अपने सैनिक अभियान के सफलतापूर्वक सम्पन्न होने के पश्चात् जब वे अपनी राजधानी लौटे तो उन्हें उनके गुप्तचरों द्वारा यह विदित हुआ कि चौला देवी ने किसी पुरुष का अद्यावधि मुंह तक नहीं देखा है । इस प्रकार का संवाद सुनने और इस विषय में सभी भांति आश्वस्त हो जाने के अनन्तर पत्तनाधीश चालुक्यराज भीम ने पूर्ण राजकीय सम्मान के साथ चौला देवी को अपने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002074
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1995
Total Pages880
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
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