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[ जैन धर्म का मौलिक इतिहास-भाग ४
उन विभिन्न दर्शनों के धर्माचार्यों के निजस्तुति एवं परनिन्दापरक उत्तरों से सिद्धराज जयसिंह का किसी निर्णय पर पहुँचना तो दूर, इसके विपरीत उन धर्माध्यक्षों की एक-दूसरे के विपरीत तर्कों एवं युक्तियों को सुन-सुन कर उसका मन अनेक प्रकार के सन्देहों के झलों पर झलता-झलता झकझोरित हो उठा। अन्ततोगत्वा सिद्धराज जयसिंह ने जैनाचार्य हेमचन्द्रसूरि को आमन्त्रित किया और उनके समक्ष भी अपना वही प्रश्न रखते हुए कहा-"महात्मन् ! मैं संसार सागर को पार करना चाहता हूं। इसीलिए मैं यह जानना चाहता हूं कि संसार सागर में डूबते हुए प्राणियों को संसारसागर से पार उतारने का दावा करने वाले आज के युग के धर्म दर्शनों में से वस्तुतः कौनसा दर्शन-कौनसा धर्म सच्चा है, जिसका अवलम्बन ले संसार सागर को तैर कर पार करने का प्रयास किया जाय ?"
राजा के प्रश्न को सुन कर आचार्य हेमचन्द्र ने मन ही मन विचार किया कि विभिन्न मान्यताओं वाले विभिन्न धर्मों के धर्माचार्यों एवं विद्वानों ने स्वदर्शनमण्डन और परदर्शन-खण्डन के अथक प्रयास में अनेक प्रकार की युक्तियों एवं तर्को को प्रस्तुत कर राजा को असमंजसपूर्ण संशयास्पद स्थिति में डाल दिया है अतः इसके समक्ष दार्शनिक तर्क एवं युक्तियों के रखने से कोई लाभ नहीं होने वाला है । विभिन्न दर्शनों के धर्माध्यक्षों ने अपने-अपने तर्कों एवं युक्तियों से राजा के मनमस्तिष्क में तर्कजाल निर्मित कर दिया है, मेरी सैद्धान्तिक युक्तियों से केवल इतना ही होगा कि उस पहले से बने हए तर्क जाल में तर्कों का एक ताना-बाना और जुड़ जायेगा । यह विचार कर आचार्य हेमचन्द्र ने रूपक के रूप में एक पौराणिक आख्यान प्रस्तुत करते हुए कहा- “राजन् ! एक पौराणिक आख्यान है कि एक व्यापारी ने अपनी पूर्व पत्नी से रुष्ट होकर अपनी सम्पूर्ण सम्पत्ति पर अपना अधिकार कर लिया। पत्नी के पास कुछ भी नहीं रक्खा । इस आकस्मिक परिवर्तन से दुःखित हो वह वणिक् पत्नी अपने पति को पुनः वश में करने के लिये अनेक तान्त्रिकों एवं मान्त्रिकों से इस प्रकार का कोई कार्य करने की प्रार्थना करने लगी जिससे कि उसका पति पूर्णरूपेण पुनः उसके वश में हो जाय । संयोग वशात् उसे एक गौडदेशीय कार्मणक (टोना करने वाले) ने एक औषधि देते हुए कहा :"यह तुम अपने पति को किसी तरह खिला देना। इसके खाते ही तुम्हारा पति डोर से बन्धे ढोर के समान तुम्हारे वश में हो जायगा।" वह औषधि देकर वह तान्त्रिक चला गया।
एक दिन रात्रि के समय उस वणिक् पत्नी ने वह औषधि भोजन में मिलाकर अपने पति को खिला दी । उस अचिन्त्य शक्ति वाली दिव्य औषधि के खाते ही तत्काल उसका पति बैल के रूप में परिवर्तित हो गया। यह देखकर वह वणिक् पत्नी अत्यन्त दुःखित हुई । उसे अपने दुष्कृत्य पर बड़ा पश्चात्ताप हुआ । किन्तु उस औषधि का उसे कोई प्रतिकार ज्ञात नहीं था । इस कारण वह विवश हो पड़ोसियों के कटु कटाक्षों, जन-जन के तानों को सुनती हुई उस बैल की सेवा करने लगी।
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