________________
सामान्य श्रुतधर काल खण्ड २ ] सिद्धराज जयसिंह
[ ३८६ तदनन्तर हाथ में दारुमयी कटार लिये यशोवर्मा के आगे हाथी पर बैठकर सिद्धराज जयसिंह ने अतीव मनोहारी आडम्बरपूर्ण ठाट-बाट के साथ जयघोषों के बीच नगर प्रवेश महोत्सव से जन-जन के मन को रंजित करते हुए अहिल्लपुर पट्टण नगर में प्रवेश किया।
प्रवेशोत्सव के सम्पन्न हो जाने के अनन्तर महाराज जयसिंह को आचार्यश्री हमचन्द्रसूरि की व्याकरण निर्माण विषयक बात का स्मरण हुआ और उन्होंने सुदूरस्थ विद्याकेन्द्रों एवं विभिन्न नगरों से उद्भट वैयाकरणों के साथ-साथ उस समय में उपलब्ध सभी प्रकार के व्याकरण ग्रन्थों को मंगवाया और उन्हें हेमचन्द्राचार्य को समर्पित किया। प्राचार्य हेमचन्द्र ने उन सभी व्याकरण ग्रन्थों का अवगाहन कर सवा लाख श्लोक परिमाण सिद्धहेम व्याकरण नामक पंचांगपूर्ण अतीव सुन्दर एवं सुगम्य व्याकरण ग्रन्थ का निर्माण किया। इस व्याकरण के निर्माण में महाराज जयसिंह के नगर प्रवेश महोत्सव के पश्चात् एक वर्ष का समय लगा। सिद्धहेम व्याकरण को हाथी के होदे पर रखकर उस पर राजसी छत्र और चामरों को ढोरते हुए बड़े महोत्सव के साथ महाराज जयसिंह के राजमन्दिर में लाया गया और बड़े हर्षोल्लास के साथ उसकी पूजा अर्चा के पश्चात् उसे राज्य कोषागार में रखा गया। महाराजा जयसिंह ने सिद्ध हेम ब्याकरण का भलीभांति परीक्षण करने के पश्चात् राजाज्ञा प्रसारित करवा दी कि उनके राज्य की सीमाओं में एकमात्र सिद्धहेम व्याकरण का ही अध्ययन-अध्यापन किया जाय, न कि किसी अन्य व्याकरण का । स्वल्प काल में ही दिग्दिगन्त में सिद्ध हेम व्याकरण की कीर्ति प्रसृत हो गई। इस व्याकरण के नामकरण में प्रयुक्त सिद्ध और हेम शब्दों से महाराज सिद्धराज जयसिंह और कलिकाल सर्वज्ञ आचार्यश्री हेमचन्द्र का नाम अमर हो गया। सिद्धराज आचार्यश्री हेमचन्द्र के त्याग, तप और प्रकाण्ड पांडित्य से इतना अधिक प्रभावित हुआ कि वह जीवन भर उनका सर्वाधिक सम्मान करता रहा ।
___ न्यायनीतिपूर्वक गुर्जर राज्य का शासन करते हुए एक दिन सिद्धराज जयसिंह के मन में यह विचार उत्पन्न हुआ कि संसार सागर को पार किये बिना शाश्वत सुख की प्राप्ति नहीं हो सकती। संसार सागर को तैर कर पार करने के लिये सभी दर्शनों में मार्ग दर्शन किया गया है। ऐसी स्थिति में कौनसा दर्शन पूर्णतः सच्चा और सर्वश्रेष्ठ है। इसका निर्णय किया जाना सर्वप्रथम परमावश्यक है। इस प्रकार के निर्णय के अनन्तर जो सर्वश्रेष्ठ और परम सत्य दर्शन हो उसी के निर्देशों का पालन करते हुए संसार सागर को पार किया जाय । इस प्रकार विचार कर गुर्जराधीश ने विभिन्न दर्शनों के धर्माध्यक्षों को राजसभा में आमन्त्रित कर सच्चे धर्म की खोज करना प्रारम्भ किया। प्रत्येक धर्माध्यक्ष से राजा ने यही प्रश्न किया कि सर्वश्रेष्ठ और सच्चा दर्शन कौनसा है ?
__ राजा के प्रश्न के उत्तर में प्रत्येक धर्माध्यक्ष ने अपने धर्मशास्त्रों के प्रमाण प्रस्तुत करते हुए एकमात्र अपने दर्शन को ही सच्चा और सर्वश्रेष्ठ बताया।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org