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[ जैन धर्म का मौलिक इतिहास - भाग ४
"राज मातेश्वरी ! मैं स्वयं नहीं जानती कि मैंने क्या पुण्य किया है । और यदि किया भी है तो मैं यह नहीं जानती कि उसे आपको किस प्रकार प्रदान किया जाय ।"
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मयल देवी ने इस प्रकार की असमंजसपूर्ण स्थिति को देखकर उस भिखारिन से पूछा : “ तुम ने इस यात्रा में सब कुछ मिलाकर कितना द्रव्य खर्च किया हैं ?"
उस भिखारिन ने हाथ जोड़कर उत्तर दिया : - " राजमाता ! मैं तो भीख. मांग-मांग कर सौ योजन की पदयात्रा के अनन्तर यहां आई हूं। कल मैंने तीर्थ पर आकर उपवास किया और उपवास के पारणे के दिन किसी पुण्यात्मा से पिण्याक ( भोज्य) प्राप्त कर उसी के एक अंश से भगवान् सोमेश्वर की पूजा कर उसका एक अंश अतिथि को दे शेष अंश से मैंने पाररणा किया था । आप महापुण्यशालिनी हैं । आपके पिता, भ्राता, पति और पुत्र राजा हैं । आपने बाहुलोड कर को सदा के लिये समाप्त करवा दिया है। सवा करोड़ मूल्य की पूजा से आपने भगवान् सोमेश्वर की पूजा की है और विपुल दान दिया है । इतना सब कुछ करने के उपरान्त भी प्रापको मेरा पुण्य प्राप्त करने की इच्छा क्यों हुई है ?".
मयल देवी को मौन एवं असमंजसावस्था में देखकर उस भिखारिन ने कहा :–'राजमाता ! यदि आप बुरा न मानें तो एक बात कहूं ।”
मयणलदेवी की मौन स्वीकृति मिलने पर उसने कहा :- " वस्तुत: देखा जाय तो आपके पुण्य से इस महीतल पर मेरा पुण्य महान् है क्योंकि विपुल सम्पत्ति
होते हुए भी, सर्व शक्तिसम्पन्न होते हुए भी सहन शक्ति (सहिष्णुता ), यौवनावस्था में ब्रह्मचर्य का व्रत और दरिद्रावस्था में दान यदि थोड़ा-सा भी किया जाय तो उसका लाभ महान् से महत्तम और वृहत् से वृहत्तम होता है । "
उस भिखारिन की बात सुनकर राजमाता मयरणलदेवी का गर्व तत्काल कपूर की तरह उड़ गया ।
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जिस समय महाराज जयसिंह अपनी माता मयरणलदेवी को सोमेश्वर की यात्रा करवा रहे थे, उस समय मालवराज यशोवर्मा ने एक विशाल राज्य को हस्तगत करने का सुअवसर देखकर गुर्जर राज्य पर आक्रमण कर दिया । चरों से शत्रु के आक्रमण की बात सुनकर महामन्त्री शान्तु तत्काल यशोवर्मा के पास पहुंचा और उससे पूछा :- " मालवेश्वर ! आप ही बताइये क्या कोई ऐसा कार्य है, जिसके, हमारे द्वारा किये जाने से आप पुनः मालव की ओर लौट सकते हों ।"
इस पर मालवराज यशोवर्मा ने कहा :- "हां, एक उपाय है। यदि तुम अपने स्वामी द्वारा की गई सोमेश्वर देव की यात्रा के फल को मुझे दे देते हो तो मैं इसी समय अपनी राजधानी को लौट सकता हूं।"
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