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उनचालीसवें (३६) युग प्रधानाचार्य विनयमित्र
जन्म दीक्षा सामान्य साधु पर्याय युग प्रधानाचार्य काल गृहस्थ पर्याय सामान्य साधु पर्याय युग प्रधानाचार्य पर्याय स्वर्ग सर्वायु
वीर निर्वाण सम्वत् १५६८ वीर निर्वाण सम्वत् १५७८ वीर निर्वाण सम्वत् १५७८ से १५६७ वीर निर्वाण सम्वत् १५६७ से १६८३ दस (१०) वर्ष । १६ वर्ष । ८६ वर्ष वीर निर्वाण सम्वत् १६८३ ११५ वर्ष, सात मास, सात दिन
अड़तीसवें युगप्रधानाचार्य धर्मघोष के स्वर्गस्थ हो जाने पर चतुर्विध संघ ने श्रमणोत्तम श्री विनयमित्र को युग प्रधानाचार्य परम्परा के ३६वें पट्ट पर युगप्रधानाचार्य के रूप में अधिष्ठित किया। इन ३६वें युगप्रधानाचार्य श्री विनय मित्र ने वीर नि. सं. १५९७ से वीर नि. सं. १६८३ तक कुल मिलाकर ८६ वर्ष जैसी सुदीर्घावधि तक जिनशासन की महती सेवा की।
अद्यावधि उपलब्ध जैन वाङ्गमय में आपका (युगप्रधानाचार्य श्री विनयमित्र का) इससे विशेष परिचय दृष्टिगोचर नहीं होता।
आपके युगप्रधानाचार्य काल में पौर्णमीयक गच्छ के प्रवर्तक श्री चन्द्रप्रभसूरि के शिष्य श्री धर्मघोष आचार्य ने वीर निर्वाण सम्वत् १६३२ के आसपास 'शब्द सिद्धि' (व्याकरण) और 'ऋषिमण्डल स्तोत्र' की रचना की।
वीर निर्वाण सम्वत् १६५६ में राजगच्छीय श्री शीलभद्रसूरि के चौथे पट्टधर धर्मघोष नामक बड़े ही प्रभावक आचार्य हुए। उनकी स्मरण- शक्ति अनुपम थी। वे उच्चकोटि के विद्वान्, अद्भुत व्याख्याता और अपने समय के अप्रतिम शास्त्रार्थजयी प्राचार्य थे। वीर निर्वाण सम्वत् १६७० के आसपास आपने शाकंभरी के राजा अर्णोराज की सभा में दिगम्बराचार्य गुणचन्द्र को शास्त्रार्थ में पराजित किया । आपके उपदेश बड़े ही प्रान्तस्तलस्पर्शी होते थे। उस समय के अनेक राजा
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