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सामान्य श्रुतधर काल खण्ड २ ]
हेमचन्द्रसूरि
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प्राचार्य श्री हेमचन्द्र के महाभारत पुराणोल्लिखित युक्तिसंगत उत्तर को सुन कर महाराज सिद्धराज जयसिंह ने अपना निर्णय देते हुए कहा :- “जैनाचार्य महर्षि हेमचन्द्र ने जो कुछ कहा है वह वस्तुतः सत्य है। हे द्विजोत्तमो ! अब इनके कथन के उत्तर में अापके पास कोई तथ्यपूर्ण प्रमाण हों तो उन्हें प्रस्तुत करिये । मैं सब दर्शनों का समान रूप से सम्मान करता हूं। इसके प्रमाण हैं मेरे द्वारा निर्मापित सभी धर्मावलम्बियों के देवस्थान । आप लोगों को भी इसी प्रकार सभी धर्मों के प्रति, सभी धर्मावलम्बियों के प्रति समान सम्मानभाव रखकर अपनी धार्मिक सहिष्णुता का परिचय देना चाहिये।"
सभी अभियोग प्रस्तुतकर्ताओं को नितान्त मौन एवं निरुत्तर देखकर महाराज जयसिंह ने प्राचार्यश्री हेमचन्द्र का सत्कार करते हुए कहा :
"महपिन् ! आप अपने आगमों के अनुसार निःसंकोच व्याख्यान कीजिये, इसमें अणुमात्र भी दूषण नहीं है।"
यह कहकर पत्तनाधिपति ने सबको सम्मानपूर्वक विदा किया ।
पत्तन निवासी सभी वर्गों एवं सभी धर्मों के लोग प्राचार्यश्री हेमचन्द्र की मुक्तकण्ठ से प्रशंसा करते हुए कहने लगे :--"सिद्ध सारस्वत प्राचार्यश्री हेमचन्द्र न केवल जैन ग्रागमों और जैन दर्शनों के ही अपितु सभी दर्शनों के, सिद्धान्त शास्त्रों एवं धर्मग्रन्थों के पारदृश्वा विद्वान् हैं।"
इस घटना से यत्र-तत्र-सर्वत्र जिनशासन की अपूर्व महिमा एवं प्रभावना हुई । जैन क्षितिज में हेमचन्द्रसूरि मध्याह्न के सूर्य के समान दैदीप्यमान हो जन-जन के अन्तर्मन को आध्यात्मिक पालोक से पालोकित करने लगे।
प्राचार्यश्री हेमचन्द्रमूरि ने जैनधर्म के प्रचार-प्रसार और जिनशासन की प्रभावना के साथ-साथ उस समय के लोगों के अन्तर्मन में घर किये हुए धार्मिक असहिगता के संस्कारों को निमल करने के लिये भी अनेक प्रकार के उल्लेखनीय कार्य किये । वे सभी धर्मों का पूर्ण रूप से सम्मान करते थे। इसी प्रकार वे अन्य दर्शनों के विद्वानों का भी समादर करने के साथ-साथ उनके प्रति बड़ी उदारता प्रकट करते रहते थे । अपनी इस प्रकार की समन्वयवादी नीति के माध्यम से गुर्जर प्रदेश में बामिक असहिष्णुता के उन्मूलन की दिशा में अथक प्रयास किये। उनकी इस प्रकार की समन्वयवादी नीति का एक बड़ा ही रोचक उदाहरण प्रभावक चरित्र में उपलब्ध होता है।
एक बार भागवत धर्मानुयायी देवबोध नामक एक प्रकाण्ड पण्डित मुनि महाराज जयसिंह की सभा में उपस्थित हुअा । वह उच्च कोटि का आशु कवि था । ममस्यापूत्ति के क्षेत्र में तो उसका एकछत्रात्मक अधिकार था। उसने पाटन की
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