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जैन धर्म का मौलिक इतिहास-भाग ४
अनन्तर मेरे शव का दाह किसी ऐसे स्थान में किया जाय जहां पूर्व में कभी किसी भी व्यक्ति का दाह संस्कार नहीं किया गया हो।"
शर-शय्या पर अपने प्राणों का विसर्जन करने से पूर्व उन्होंने पाण्डवों और कौरवों, सभी को और मुख्यतः अर्जुन को पुनः अन्तिम इच्छा प्रकट करते हुए कहा :-"मेरी इस बात को स्मरण रक्खा जाय कि मेरे शव का दाह उसी स्थान पर किया जाय जहां पूर्व काल में किसी भी शव का दाह न किया गया हो ।" यह कहते हुए भीष्म पितामह ने सूर्य के उत्तरायण में आने पर अपने प्राणों का विसर्जन किया।
कौरव और पाण्डव सभी भीष्म पितामह के पार्थिव शरीर का अन्तिम संस्कार करने के लिये एक दुर्लघ्य गगनचुम्बी गिरिराज के शिखर पर पहुंचे। वहां यह सोचकर कि ऐसे दुरारोह गिरिशिखर पर तो पूर्व में किसी ने किसी भी शव के दाह संस्कार करने का साहस नहीं किया होगा, उस स्थान पर वे भीष्म के शव के अन्तिम संस्कार का उपक्रम करने लगे। उसी समय दिव्य आकाशवाणी इस रूप में प्रकट हुई :
"अत्र भीष्मशतं दग्धं, पाण्डवानां शत त्रयम् ।
द्रोणाचार्य सहस्र तु, कर्ण संख्या न विद्यते ।।१६२॥" अर्थात् इस स्थान पर पूर्व में सौ भीष्मों का, तीन सौ पांडव पंचकों का और एक हजार द्रोणाचार्य नामक मृतात्माओं के शवों का दाह संस्कार हो चुका है, और कर्ण नाम के इतने लोगों के शवों का दाह संस्कार हना है कि जिनकी संख्या किसी को विदित ही नहीं है।
यह स्वयं वेदव्यास का कथन है। इतनी बड़ी संख्या में जो पूर्वकाल में पाण्डव हुए हैं, उनमें से जो पाण्डव जिनेश्वर भगवान् के अनुयायी थे उन्हीं का कथन हमारे ग्रागमों में है और उसी अाधार पर मैंने पांडवों का चरित्र, उनकी दीक्षा
और अनशनपूर्वक गिरिनार पर्वत पर उनके सिद्ध बुद्ध और मुक्त होने की बात अपने व्याख्यान में कही है। शत्रुञ्जय पर्वत पर उन पांचों पाण्डवों की मूत्तियां आज भी विद्यमान हैं। इसी प्रकार नासिक्यपुर के श्री चन्द्रप्रभ जिनालय में भी पांचों पाण्डवों की मूत्तियां हैं। केदार महातीर्थ में मेरे इन बन्धुत्रों के धर्मग्रन्थों के उल्लेखानुसार तीन सौ की संख्या वाले व्यास द्वारा वरिंगत पांडवों में से कोई पांडव होंगे, उनके सम्बन्ध में हमें कुछ भी ज्ञात नहीं है । जिस प्रकार गंगा किसी की पैतृक सम्पत्ति नहीं, उसी प्रकार ज्ञान भी किसी की पैतृक सम्पत्ति नहीं है। यह वेद निष्णात स्मृतियों के पारगामी विद्वान् ही बताएं कि व्यास ने जिन पाण्डवों का हिमाद्रि पर अवसान होने का वर्णन किया है, वे इन उपरिलिखित तीन सौ, पांचपांडवों में से कौनसे पांडव थे ?"
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