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सामान्य श्रुतधर काल खण्ड २ ] हेमचन्द्रसूरि
[ ३५५ प्रसारित करवा दी कि उसके राज्य में कहीं 'सिद्ध हेम व्याकरण' के अतिरिक्त अन्य किसी भी व्याकरण ग्रन्थ का अध्ययन-अध्यापन न किया जाय ।
सिद्धहेम व्याकरण के अध्ययन-अध्यापन को पूर्ण प्रोत्साहन प्रदान करने हेतु प्रत्येक वर्ष की ज्ञान पंचमी के दिन अखिल राज्यस्तर पर सिद्धहेम व्याकरण की परीक्षा का आयोजन राज्य की ओर से किया गया। जो शिक्षार्थी इस परीक्षा में उच्चकोटि के अंकों से उत्तीर्ण होते उन्हें स्वयं महाराज सिद्धराज जयसिंह द्वारा महाय, दुशालों एवं स्वर्णाभूषण के पारितोषिकों से तथा स्वर्णपदक प्रदान आदि से सम्मानित किया जाता। सर्वश्रेष्ठ शिक्षकों को भी सुखासन आदि से स्वयं राजा द्वारा सम्मानित किया जाता । इस प्रकार के पारितोषिकों एवं प्रोत्साहनों के परिरणामस्वरूप सिद्धहेम व्याकरण के अध्ययनार्थियों की संख्या प्रतिवर्ष उत्तरोत्तर बढ़ती ही गई । राज्य द्वारा दिये जाने वाले इस प्रकार के प्रोत्साहनों का ऐसा चमत्कारिक प्रभाव हुआ कि भारत के विशाल भू-भाग में 'सिद्ध हेम व्याकरण' का पठन-पाठन बड़ा ही लोकप्रिय हो गया। अन्य व्याकरणों को अनेक राज्यों के लोग प्रायः भूल से गये।
प्राचार्यश्री हेमचन्द्रसूरि के प्राशु कवि एवं प्रमुख शिष्य मुनि श्री रामचन्द्र की चक्षुपीड़ा से दक्षिण नेत्र की दृष्टि विलुप्त हो जाने के कारण आचार्यश्री को पाटन में ही चातुर्मासावास करना पड़ा। चातुर्मासावधि में श्री हेमचन्द्रसूरि ने बावीसवें तीर्थंकर श्री नेमिनाथ के चरित्र पर विस्तारपूर्वक व्याख्यान देना प्रारम्भ किया। एक ओर तो अपूर्व त्याग अोज और प्रेरणाओं से ओत-प्रोत भगवान् नेमिनाथ का पावन जीवन चरित्र, और दूसरी ओर उस पर व्याख्यान करने वाले सिद्ध सारस्वत साक्षात् सरस्वती पुत्र श्री हेमचन्द्रसूरि, इस मरिण कांचन तुल्य अद्भुत संयोग का लाभ उठाने के लिये अरणहिल्लपुर पट्टण के आबाल वृद्ध नर-नारीवृन्द चतुर्मुख जिनालय के अति विशाल व्याख्यान भवन की अोर उत्तरोत्तर अधिकाधिक संख्या में उमड़ने लगे। भगवान् नेमिनाथ के पावन जीवन चरित्र पर जिस समय प्राचार्यश्री का प्रवचन प्रारम्भ होता, थोताओं को अनुभव होता कि चारों ओर अमृत वर्षा हो रही है । व्याख्यान के प्रारम्भ काल से लेकर अवसान काल तक सभी श्रोता चकोर की भांति अपनी दृष्टि प्राचार्य श्री के मुखचन्द्र पर केन्द्रित किये अपूर्व उत्कण्ठा से उनकी सुधा सिक्त वाणी में वर्णित भगवान् सेमिनाथ के पवित्र चरित्रामृत का पान करते रहते । जिनेश्वर नेमिनाथ के जीवन चरित्र और प्राचार्यश्री हेमचन्द्रसूरि की सरस अद्भुत व्याख्यान शैली की श्रोताओं के मुख से महिमा सुनकर सभी धर्मों के अनुयायी-सभी दर्शनों के लोग भी व्याख्यान में एकत्रित होने लगे । व्याख्यान का श्रवण करते-करते श्रोतागण अनेक बार भाव-विभोर हो झूम उठते । कथानक के करुण प्रसंग पर पाबालवृद्ध नर-नारियों के नेत्र युगल से गंगा यमुना प्रवाहित हो उठतीं । वहीं वीर रस के प्रसंग में बालकों एवं महिलाओं तक की भुजाएं फड़क उठतीं । सभी श्रोतागण व्याख्यान के अवसान पर व्याख्यान
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