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________________ ३५६ ] [ जैन धर्म का मौलिक इतिहास-भाग ४ शैली की, पवित्र जीवन चरित्र की मुक्त कण्ठ से प्रशंसा करते हए परस्पर यही कहते हुए घर पहुंचते कि ऐसे अनिर्वचनीय आनन्द का अनुभव तो जीवन में इसी बार हुआ है। भगवान् नेमिनाथ के चरित्र के अन्तर्गत पांडवों के चरित्र चित्रण का भी प्रसंग आया । युधिष्ठिर की सत्यवादिता, भीम के अतुल बल और 'अर्जुनस्य प्रतिज्ञे द्वे, न दैन्यं न पलायनम्' इन दो महान् प्रतिज्ञावाले महान् धनुर्धर अर्जुन के शौर्य का वृत्तान्त सुनकर श्रोतागण अपने आपको भूलकर कल्पनालोक में उड़ाने भरने लगते। ___ एक दिन पांडवों के जीवन वृत्त का उपसंहार करते हुए प्राचार्यश्री हेमचन्द्र ने जब यह कहा कि पांचों पाण्डवों ने एवं द्रौपदी ने पांच महाव्रतों की प्रव्रज्या ग्रहण कर ली तथा कठोर श्रमरण धर्म का पालन कर पांचों पाण्डव अन्त समय में संलेखना संथारा कर सिद्ध बुद्ध मुक्त हुए और द्रौपदी देवलोक में गई, तो कतिपय धर्मान्ध व्यक्ति मात्सर्याभिभूत हो क्रुद्ध हो उठे। और उन्होंने सिद्धराज जयसिंह के समक्ष उपस्थित होकर न्याय की प्रार्थना करते हुए निवेदन किया : "महाराज ! हमारे पूर्वर्षि वेदव्यास कृष्ण द्वैपायन ने महाभारत में स्पष्ट रूप से लिखा है कि अन्त समय में पांडुपुत्र युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव हिमालय पर्वत पर गये । उन्होंने हिमालय पर्वत पर केदार नामक स्थान में अवस्थित भगवान् शंकर को स्नान करा उनकी भावपूर्वक पूजा अर्चना की और भगवान् शंकर की आराधना करते हुए उन्होंने अपने प्राणों का विसर्जन किया था । इसके विपरीत श्वेताम्बराचार्य श्री हेमचन्द्र अपने सार्वजनिक व्याख्यानों में जैन-अजैन सभी धर्मावलम्बियों के समक्ष यह कहते हैं कि पांचों पाण्डवों ने जैन श्रमणधर्म की दीक्षा ली और गिरनार पर्वत पर अनशन कर मोक्ष प्राप्त किया। हमारे ब्रह्मज्ञानी पूर्वर्षि कृष्ण द्वैपायन वेदव्यास के कथन के विपरीत इस प्रकार की बिना शिर पैर की बातें विशाल जनसमूह के समक्ष कह कर ये शूद्र श्वेताम्बर हमारी धार्मिक भावनाओं पर आघात करते हैं। महाराज आप जैसे न्यायप्रिय नरेश्वर से हम प्रार्थना करते हैं कि आप न्याय कर इन श्वेताम्बरों को आदेश दें कि वे भविष्य में हमारी धार्मिक भावनाओं पर इस प्रकार के प्राघात न करें।" उन लोगों की बात ध्यानपूर्वक सुनकर महाराज सिद्धराज जयसिंह ने उन्हें आश्वस्त करते हुए कहा-"हमारे राजवंश के राजाओं की यह परम्परा रही है कि वे किसी भी बात के सब पहलूगों पर विचार किये बिना निर्णय नहीं देते। किसी भी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002074
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1995
Total Pages880
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
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