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सामान्य श्रुतधर काल खण्ड-२ ]
.हेमचन्द्रसूरि
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स्तम्भ तीर्थ पहुंचा । मार्ग में श्रम से थककर चूर हुअा धूलि-धूसरित चाचिग सीधा देवसूरि के पास उपाश्रय में गया। क्रोधातिरेक से उसका मुखमण्डल तमतमा रहा था। भावावेशवशात् श्वासोच्छ्वास की गति तीव्र हो जाने के कारण उसके नथुने फूल उठे थे। इस प्रकार क्रोधाभिभूत क्लान्त चाचिग ने केवल कुलागत संस्कारवशात् ग्रीवा को थोड़ा-सा झुका आचार्यश्री को नमन किया। प्रथम दृष्टि-निपात में ही देवेन्द्रसरि ने मुखाकृति से चाचिग को पहचान कर सुधासिक्त शान्त वचनों से उसके क्रोध का शमन कर दिया। खम्भात (स्तम्भ तीर्थ) का सामन्त मन्त्री उदयन भी उस समय आचार्यश्री की सेवा में बैठा हुआ था। चाचिग के साथ आचार्यश्री के सम्भाषण के प्रथम वाक्य से ही उदयन ने ताड़ लिया कि नवागन्तुक होनहार बालक चंगदेव का जनक श्रेष्ठि चाचिग ही है।
__ अवसरज्ञ मन्त्रीश्वर उदयन ने आचार्यश्री के चरणों पर अपना मस्तक रख उठने का उपक्रम करते हुए आचार्यश्री से निवेदन किया--"प्राचार्यदेव ! मुझे आपकी सेवा में उपस्थित हुए पर्याप्त समय हो गया है । मन तो चाहता है कि अहर्निश इन चरणों की सेवा में हो रहूं किन्तु बालक चंगदेव बड़ी उत्कण्ठा से मेरी प्रतीक्षा कर रहा होगा । ये धर्मबन्धु भी बड़ी दूर से आये हुए श्रान्त से प्रतीत होते हैं। ये भी मेरे साथ चलकर अशन-पानादि के अनन्तर अपनी थकान दूर कर लेंगे।
प्राचार्यश्री की आशीर्वाद मुद्रा में मौन सम्मति देखकर मन्त्रिवर उदयन ने धूलि-धूसरित परिश्रान्त एवं क्लान्त मुख चाचिग श्रेष्ठि को सम्बोधित करते हुए कहा :-"सम्माननीय धर्मबन्धु ! आइये, अपने स्वधर्मी बन्धु की झौंपड़ी को भी पवित्र कर दीजिये।"
श्रेष्ठि चाचिग ने एक बार देवचन्द्रसूरि के मुख मण्डल की ओर और तदनन्तर उदयन की अोर दृष्टि निक्षेप कर अनुभव किया कि आचार्यश्री के मुखमण्डल पर अथाह असीम शांति का साम्राज्य झलक रहा है और उदयन की प्रभावपूर्ण मुखमुद्रा से आन्तरिक आग्रहभरी मनुहार । श्रेष्ठि चाचिग उठा और अब की बार पूर्ण श्रद्धा से नत मस्तक हो आचार्यश्री को प्रणाम करने के अनन्तर मन्त्री उदयन के साथ उपाश्रय से प्रस्थित हुआ। .
उपाश्रय के बाहर पैर रखते ही यह देखकर श्रेष्ठि चाचिग के आश्चर्य का पारावार नहीं रहा कि बड़े-बड़े राज्याधिकारी अपना-अपना वाम कर अपने वक्षस्थल पर रखे आजानुशीष झुका कर दक्षिण कर से पृथ्वी तल का स्पर्श करते हुए, उसके आगे-आगे चलते हुए भद्र पुरुष को अति विनम्र मुद्रा में प्रणाम कर रहे हैं। विस्फारित नयन युगल से चाचिग यह देख ही रहा था कि सहसा श्वेतवर्ण के हृष्टपुष्ट जातीय अश्वों से वाहित एक बड़ी ही सुन्दर बग्घी उसके समक्ष उपस्थित हुई। जामुनी रंग की मखमल में जरी के काम का आनख-शिख परिधान पहने बग्घी
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