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[ जैन धर्म का मौलिक इतिहास-भाग ४
वाहक ने विद्युत्वेग से नीचे उतर उसी विनयावनत मुद्रा में उस भद्र पुरुष का अभिवादन करते हुए बग्घी का द्वार खोला। सहसा भद्र पुरुष ने पीछे की ओर मुड़कर श्रेष्ठि चाचिग का करावलम्बन कर उसे बग्घी में एक उच्चासन पर आसीन किया और स्वयं भी चाचिग के वाम पार्श्व में उसी उच्चासन पर आरूढ़ हो गया । द्वार बन्द कर रथी ने घोड़ों की रास सम्भाली और उसके एक ही इंगित पर बग्घी को लिये आठों अश्व पवन को भी पीछे ढकेलते हुए राजपथ पर सरपट दौड़ने लगे। चाचिग ने देखा-राजपथ के दोनों पार्श्व की आपरिणकाओं में बैठे क्रय-विक्रय में व्यस्त ग्राहक और व्यवसायी घोड़ों के पोड़ों की ध्वनि कर्णरन्ध्रों में पड़ते ही विद्युत् वेग से खड़े हो उस भद्र पुरुष को सांजलि शोष झुका अभिवादन करने लगे और गगनचुम्बी भवनों के गवाक्षों एवं अट्टालिकाओं पर खड़ी सुहागिनें बग्घी की ओर अबीर और पुष्प की वर्षा करने लगीं। आश्चर्याभिभूत चाचिग इस प्रभावोत्पादक नयनाभिराम दृश्य को देख देखकर मन ही मन यह सोच ही रहा था कि उसके वाम पार्श्व में बैठा हुआ यह भद्र पुरुष वस्तुतः है कौन, जिस पर नगर के नर नारी वृन्द पग-पग पर सम्मानपूर्ण असीम आन्तरिक अनुराग उंडेल रहे हैं, कि वह बग्घी एक राज प्रासादोपम गगनचुम्बी भव्य भवन के विशाल द्वार में प्रविष्ट हो मुख्य भवन के सोपान प्रकोष्ठ में रुकी। रथी ने पूर्व की ही भांति त्वरित गति से नीचे उतर कर बग्घी का द्वार खोला और विनत मुद्रा में द्वार थामे खड़ा हो गया।
मन्त्रिवर उदयन ने रथ से नीचे उतर कर श्रेष्ठि चाचिग को करावलम्बन दे सम्मानपूर्वक बग्घी से नीचे उतारा और उन्हें साथ लिये अपने मन्त्रणाकक्ष में प्रवेश किया। उसी समय बालक चंगदेव दौड़ा-दौड़ा आया और उदयन के घुटनों को अपने छोटे-से बाहुपाश में आबद्ध कर मचलते हुए प्रश्न किया :-"मन्त्री प्रवर! आपने इतना विलम्ब कहां कर दिया ?"
___ बालक चंगदेव के दोनों कपोलों को अपने करतल युगल से दुलारपूर्वक सहलाते हुए मन्त्रिवर ने कहा :-“देखो चतुर चंगे चंग ! हमारे यहां ये कौन आये हैं ?" यह कहकर उदयन ने अपने सेवकों को आदेश दिया कि वे चाचिग के स्नानादि की व्यवस्था करें।
बालक चंगदेव ने इधर मन्त्री के इंगित की ओर देखा और “बप्पा ! आप कब आये?" कहते हुए अपने पिता के चरणों में प्रणाम किया। चाचिग ने भी चंगदेव को अपने वक्षस्थल से चिपका कर बार-बार उसके मस्तक को सूंघा ।
__"बप्पा ! मैंने पढ़ना-लिखना सीख लिया है। स्वयं मन्त्रीश्वर भी मुझे पढ़ाते हैं । बड़े अच्छे हैं ये । बप्पा ! जानते हो? ये मन्त्रीश्वर बप्पा उदयन हैं ।".
उदयन ने बालक को दुलार से उलाहने के स्वर में कहा :-"चंगे! चंग ! अपने बप्पा को कुछ खिलायेगा-पिलायेगा भी कि केवल बातों से ही इनका पेट भर देगा ?"
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