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________________ मलधारी प्राचार्य हेमचन्द्रसूरि प्राचार्य मलधारी हेमचन्द्रसूरि विक्रम की बारहवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध के एक महान् प्रभावक, राजमान्य, महापुरुष और महान् ग्रन्थकार प्राचार्य हुए हैं। उन्होंने स्वहस्त लिखित जीव समास वृत्ति के अन्त में अपना थोड़ा-सा परिचय निम्नलिखित रूप में दिया है : "ग्रन्थाग्र ६६२७ । सम्वत् ११६४ चैत्र शुदि ४ सोमेऽद्येह श्रीमदणहिलपाट के समस्तराजावलि विराजित महाराजाधिराज परमेश्वर श्रीमज्जयसिंह देवकल्याणविजयराज्ये एवं काले प्रवर्तमाने यमनियमस्वाध्यायध्यानानुष्ठानरतपरम नैष्ठिकपंडित श्वेताम्बराचार्य भट्टारक श्री हेमचन्द्राचार्यरण पुस्तिका लि० श्री० ।" अर्थात्-आज सम्बत् ११६४ की चैत्र शुक्ला ४ सोमवार के दिन यहां प्रणहिल्लपुर पट्टण नगर में अपने समस्त सामन्तों से सेवित महाराजाधिराजपरमेश्वर-श्रीमान् जयसिंहदेव के कल्याणकारी, विजयश्री सम्पन्न राज्य काल में यम-नियम-स्वाध्याय, ध्यान, अनुष्ठान में निरत परम नैष्ठिक पंडित श्वेताम्बर आचार्य भट्टारक श्री हेमचन्द्राचार्य ने यह पुस्तिका लिखी। प्रशस्ति के इस उल्लेख से यह एक नवीन तथ्य प्रकाश में आता है कि दिगम्बर आम्नाय की भट्टारक परम्परा की भांति श्वेताम्बर आम्नाय में भी भट्टारक विरुद का प्रयोग आचार्यों के नाम के पूर्व में किया जाता था। यही कारण है कि दिगम्बर परम्परा के भट्टारकों से अपने आपको भिन्न बताने के उद्देश्य से हेमचन्द्राचार्य ने अपने नाम से पूर्व श्वेताम्बराचार्य-भट्टारक शब्दों का प्रयोग किया है। प्राचार्य मलधारी हेमचन्द्र वस्तुत: प्रश्नवाहन कुल की मध्यम शाखा के हर्षपुरीय गच्छ के आचार्यश्री मलधारी अभयदेवसूरि के प्रमुख शिष्य एवं पट्ट थे। प्राचार्य अभयदेवसूरि महान् तपस्वी एवं परम क्रियावादी सम्यग् आचार सम्पन्न श्रमण श्रेष्ठ थे। उनके शरीर पर और वस्त्रों पर मल देखकर प्रणहिल्लपुर पट्टणाधीश महाराज जयसिंह ने उन्हें मलधारी विरुद से विभूषित किया । 'यथा गुरुस्तथा शिष्यः' इस सूक्ति के अनुसार आचार्यश्री हेमचन्द्रसूरि ने भी अपने शरीर और वस्त्र के प्रक्षालन को ओर कभी कोई ध्यान नहीं दिया । इसी कारण अपने गुरु की भांति वे भी जीवन भर मलधारी विरुद से अभिहित किये जाते रहे। .. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002074
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1995
Total Pages880
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
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