SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 338
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सामान्य श्रुतधर काल खण्ड २ ] हेमचन्द्रसूरि [ ३१६ मलधारी प्राचार्य हेमचन्द्रसूरि के तीन प्रमुख शिष्य थे, विजयसिंह, श्रीचन्द्र और विबुधचन्द्र । उनमें से श्रीचन्द्र उनके पट्टधर आचार्य हुए। प्राचार्य श्रीचन्द्र ने अपनी कृति “मुनि सुव्रत चरित्र" की प्रशस्ति में अपने गुरु मलधारी हेमचन्द्रसूरि का और अपने दादा गुरु मलधारी अभयदेवसूरि का परिचय देते हुए लिखा है :"अपने सौम्य, प्रोजस्वी एवं तेजस्वी स्वभाव से श्रेष्ठ पुरुषों के हृदय को आनन्दित करने वाले कौस्तुभ मणि के समान श्री हेमचन्द्रसूरि मलधारी आचार्य अभयदेवसूरि के पश्चात् हुए । हेमचन्द्रसूरि अपने समय के एक समर्थ प्रवचन पारगामी व्याख्याता थे । “वियाह पण्णत्ति” (भगवती शतक) जैसा विशालकाय आगम तो उन्हें अपने नाम की भांति कण्ठस्थ था। उन्होंने अपने अध्ययन काल में मूल आगमों, भाष्यों एवं आगमिक ग्रन्थों के साथ-साथ व्याकरण, न्याय, साहित्य आदि अनेक विषयों का तलस्पर्शी अध्ययन किया था। उनका राजाओं, अमात्यों एवं प्रजा के सभी वर्गों पर बड़ा प्रभाव था । वे जिन शासन की प्रभावना के कार्यों में गहरी रुचि लेते थे। उनके अन्तस्तल में संसार के प्राणिमात्र के लिये करुणा का सागर तरंगित रहता था। घनरव गम्भीर स्वर में जिस समय वे प्रवचनामृत की वर्षा करते थे, उस समय जिन भवन के बाहर खड़े रहकर भी लोग उनके उस उपदेशामृत का रसास्वादन करते रहते थे। वे व्याख्यानलब्धि सम्पन्न थे। अत: उनके शास्त्रीय व्याख्यान को सुनकर मन्द मति वाले लोग भी सहज ही बोध प्राप्त कर लेते थे। उपमिति भव प्रपंच कथा जैसे दुरूह ग्रन्थ पर अपने श्रद्धालु भक्तों की प्रार्थना पर आपने लगातार तीन वर्ष तक प्रवचन दिये । आपकी सरस सुगम व्याख्यान शैली से उपमिति भव प्रपंच कथा आपके समय में बड़ी लोकप्रिय हो गई। आपने अनेक ग्रन्थों की रचना की । अन्त में अपना अन्तिम समय निकट समझ कर मलधारी हेमचन्द्रसूरि ने अपने स्वर्गस्थ गुरु अभयदेवसूरि की ही भांति आलोचनापूर्वक संलेखना संथारा स्वीकार किया। आपके गुरु अभयदेवसूरि ने ४७ दिन का अनशन किया था और आपने ७ दिन का । राजा सिद्धराज स्वयं आपकी शवयात्रा में सम्मिलित हुआ था, जबकि आपके गुरु अभयदेव की शवयात्रा का दृश्य राजा सिद्धराज ने अपने महलों से ही देख लिया था।" मलधारी हेमचन्द्रसूरि के जीवन से सम्बन्धित जो थोड़े बहत उपरि वरिणत तथ्य उपलब्ध होते हैं, उनमें संभवतः शोधार्थियों के लिये, इतिहास-गवेषकों के लिये बड़ी महत्त्वपूर्ण सामग्री छुपी पड़ी प्रतीत होती है। गुर्जरेश सिद्धराज जयसिंह ने मलधारी हेमचन्द्रसूरि के गुरु प्राचार्य अभयदेवसूरि को मलधारी की उपाधि दी। इससे प्रत्येक विज्ञ के अन्तर्मन में सहज ही यह जिज्ञासा उत्पन्न होती है कि उनके समय में बड़ी संख्या में जो श्रमण विद्यमान थे, उनमें से केवल अभयदेवसूरि को ही मलधारी की उपाधि से सिद्धराज जयसिंह ने क्यों विभूषित किया ? क्या अभयदेवसूरि को छोड़ शेष सब श्रमण अपने शरीर को और अपने वस्त्रों को पूर्णतः स्वच्छ एवं निर्मल अथवा मल विहीन रखते थे? यदि विभिन्न श्रमण परम्पराओं के सभी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002074
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1995
Total Pages880
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy