SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 285
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २६६ ] [ जैन धर्म का मौलिक इतिहास-भाग ४ बात फैल गई थी कि किसी सुयोग्य साधु को श्री जिनवल्लभसूरि का पट्टधर नियुक्त किया जायेगा, अतः पट्टाभिषेक के अवसर पर की जाने योग्य सभी प्रकार की समुचित व्यवस्था की गई। एक दिन देवभद्राचार्य ने पण्डित सोमचन्द्र मुनि से एकान्त में कहा"अमुक दिन आपको जिनवल्लभसूरि के पट्ट पर आसीन किया जायेगा।" । पण्डित सोमचन्द्र मुनि ने उत्तर दिया-"आपने जो विचार किया है, ठीक ही है। किन्तु इस मुहर्त पर यदि मुझे जिनवल्लभसूरि के पट्ट पर बैठाया जायेगा तो मैं चिरंजीवी नहीं हो सकूँगा, इस मुहूर्त के छः दिन बाद शनिवार को बड़ा ही शुभ मुहूर्त आता है । उस मूहूर्त में यदि पट्टधर पद प्रदान किया जाय तो चारों दिशाओं में मेरे विचरण करने से भू-मण्डल में दूर-दूर तक हमारे गच्छ के साधु-साध्वी, श्रावक-श्राविकाओं की संख्या में अभूतपूर्व वृद्धि होगी। हमारा चतुर्विध संघ बड़ा शक्तिशाली और सुविशाल हो जायेगा।" श्री देवभद्रसूरि ने कहा-"ठीक है, वह मुहूर्त भी कोई दूर नहीं, केवल छः दिन पश्चात् ही तो है । तो यह निश्चित रहा कि शनिश्चरवार के शुभ मुहूर्त में ही पट्टाभिषेक किया जायेगा।" मुहूर्त सम्बन्धी निर्णय के अनन्तर वि. सं. ११६६ की वैशाख शुक्ला १ शनिश्चरवार के दिन शुभ मुहूर्त में बड़े ही ठाट-बाटपूर्ण महोत्सव के साथ मुनि सोमचन्द्र को श्री जिनदत्तसूरि द्वारा चित्तौड़ नगर में प्रतिष्ठित महावीर चैत्य में श्री जिनवल्लभसूरि के पद पर प्रतिष्ठित किया गया। सूरि पद पर अधिष्ठित करने के अवसर पर पण्डित मुनि सोमचन्द्र का नाम श्री 'जिनदत्तसूरि' रखा गया। पट्टाभिषेक के पश्चात् श्री जिनदत्तसूरि से प्रवचन देने के लिये निवेदन किया गया। देवभद्राचार्य की अभ्यर्थना का समादर करते हुए जिनदत्तसूरि ने भावपूर्ण देशना दी। अपने प्राचार्य के मुखारविन्द से प्रेरणास्पद भावपूर्ण देशना सुनकर श्रोतागण मंत्रमुग्ध की भांति घड़ी भर के लिए आध्यात्मिक आलोक में विचरण करने लगे। प्रवचन श्रवण के पश्चात् सभी श्रोताओं ने अपने-अपने अान्तरिक उद्गार अभिव्यक्त करते हुए कहा—धन्य हैं देवभद्राचार्य, जिन्होंने महान् प्रभावक जिनवल्लभसूरि की इच्छानुसार उनके पट्ट पर जिनदत्तसूरि जैसे सर्वथा सुयोग्य सुपात्र को अधिष्ठित किया है । जिनवल्लभगरिग ने यही कहा था कि मेरे पट्ट पर मुनि सोमचन्द्र को बिठाना । आज आपने उनकी इच्छा को साकार कर दिया।" एक दिन चित्तौड़ नगर में ही जिनशेखर की मुनिव्रत सम्बन्धिनी किसी स्खलना के अपराध को देखकर देवभद्राचार्य ने उन्हें गच्छ से निष्कासित कर दिया। जिनशेखर नगर के बाहर एक ऐसे स्थान पर जाकर बैठ गये जहां से जिनदत्तसूरि शौचादि से निवृत्ति के लिये जंगल की ओर जाते थे। जिनदत्तसूरि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002074
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1995
Total Pages880
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy