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________________ ] [ जैन धर्म का मौलिक इतिहास - भाग ४ टीले की खुदाई से प्राप्त हुई ऐतिहासिक सामग्री के आधार पर यह तथ्य भी प्रकाश में लाया जा सका है कि कनिष्क के राज्य के चौथे वर्ष, तद्नुसार वीर निर्वारण सम्वत् ६०६ से पूर्व की कोई जैन मूर्ति मथुरा के राजकीय संग्रहालय में नहीं है ।' वीर निर्वारण सम्वत् ६०९ की यह मूर्ति भी मथुरा के प्रति प्राचीन स्तूप के अवशेषों में मिली है । स्तूप वस्तुतः किन्हीं तीर्थंकर भगवान् अथवा महापुरुष की स्मृति में उस स्थान पर बनाये जाते थे, जिस स्थान पर कि उनके पार्थिव शरीर की अन्त्येष्टि क्रिया की जाती थी । ऐसी स्थिति में स्तूप में जो मूर्ति रखी जाती थी वह पूजा अर्चा के लक्ष्य से नहीं अपितु स्मृति के एक प्रतीक के रूप में होती थी । इस प्रकार के ऐतिहासिक प्रमारणों के आधार पर यह तथ्य प्रकाश में लाया गया कि वीर निर्वारण सम्वत् ६०६ से पहले मथुरा के उस प्राचीन स्तूप में कोई जिनमूर्ति कभी नहीं रखी गई थी। इस प्रकार के ठोस ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर द्वितीय भाग के आलेखन के समय यह तथ्य प्रकाश में लाया गया कि वीर निर्वारण सम्वत् ६०६ तद्नुसार शक सम्वत् ४ से पूर्व साधारणतः सर्वत्र और मुख्यत: स्तूपों में मूत्तियां नहीं रक्खी जाती थीं । दूसरे शब्दों में यह कहा जाय तो अतिशयोक्ति नहीं होगी कि वीर निर्वारण सम्वत् ६०९ से पूर्व मथुरा जैसे जैनधर्म के सुदृढ़ केन्द्र स्थल में मूर्ति पूजा का प्रचलन नहीं था । हमारे द्वारा प्रतिपादित किये गये इस ऐतिहासिक तथ्य की पुष्टि प्रान्ध्रप्रदेश के गुन्टूर जिले के वहुमानु ग्राम में डा. टी. वी. जी. शास्त्री, संचालक, विरला पुरातत्व एवं सांस्कृतिक शोध प्रतिष्ठान (डायरेक्टर, बिरला प्राचियोलोजिकल एण्ड कल्चरल रिसर्च इन्स्टीट्यूट) के तत्वावधान में मिले हुए अनुमानत: २२०० वर्ष पूर्व के स्तूप के अवशेषों से होती है । इस खुदाई में ऐतिहासिक तथ्यों पर काश डालने वाले शिलालेख तो उपलब्ध हुए हैं पर पूरी खुदाई * एक भी मूर्ति अथवा उसका कोई अंश उपलब्ध नहीं हुआ है । इससे यही असन्दिग्ध रूप से सिद्ध होता है कि जैनधर्म में प्राचीन काल में मूर्तिपूजा के लिये प्राडम्बर का कोई स्थान नहीं था । हमें इस बात का सन्तोष है कि इस ग्रन्थमाला में जैनधर्म का जो निर्वाणोत्तर १००० वर्ष का इतिहास प्रस्तुत किया गया है, उसकी प्राज से दो सहस्राब्दि और उससे भी पूर्व उट्टं कित किये गये विभिन्न काल के शिला लेखों से भी पुष्टि हो रही है । १. जैन शिलालेख संग्रह, भाग २, लेख संख्या १६, पृष्ठ संख्या १९. दैनिक हिन्दू समाचार-पत्र, मद्रास २५ / २६/७/८५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002074
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1995
Total Pages880
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
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