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[ जैन धर्म का मौलिक इतिहास-भाग ४
...............The remains of the Shloka which commenced the inscription show that this statue was properly consecrated by advice of Vir Pandya's guru, by name Lalit Keerti. Its date-1432 A.D. Vir Pandya seems to have been a Jain feudatory of Vidyanagar, at Ikkiri above the Ghats but his successors seem to have been bigoted Lingaits, and to have much contributed to the decay of the Jains in South Kanara.”ı
इससे यह तथ्य प्रकाश में आता है कि वि. सं. १४८८ तक दक्षिण कर्नाटक में जैन बड़ी भारी संख्या में विद्यमान रहे और उनका न केवल शासक वर्ग पर ही अपित जन मानस पर भी सर्वाधिक प्रभाव रहा। विक्रम की पन्द्रहवीं शताब्दी के अन्तिम दशक में दक्षिणी कर्णाटक में विद्यानगर के कट्टर जैन धर्मावलम्बी सामन्तराज वीर पाण्ड्य के उत्तराधिकारियों ने लिंगायत सम्प्रदाय के अनुयायी बनकर धर्मोन्माद के वशीभूत हो दक्षिण कर्णाटक से जैन धर्म को निरवशिष्ट करने के लिंगायतों के अभियान का नेतृत्व किया ।
इस प्रकार ईसा की बारहवीं शताब्दी के तृतीय अथवा चतुर्थ दशक में जैन धर्मावलम्बियों के विरुद्ध जो धर्मोन्माद का ताण्डव नृत्य प्रान्ध्रप्रदेश और कर्नाटक में प्रारम्भ हुआ उसका अन्तिम चरण ईसा की पन्द्रहवीं शताब्दी के अन्त में जाकर समाप्त हुआ । जैनों के अस्तित्व को मिटाने के लिए लिंगायतों द्वारा प्रारम्भ किया गया यह हिंसात्मक अभियान लगभग चार सौ वर्ष तक चलता रहा और अन्ततोगत्वा चार सौ वर्ष के हिंसक वातावरण के परिणामस्वरूप आन्ध्रप्रदेश में जैनों का अस्तित्व पूर्णतः समाप्त हो गया।
__ इन उपरिवरिणत ऐतिहासिक तथ्यों के परिप्रेक्ष्य में विचार करने पर एक स्पष्ट चित्र यह प्रकाश में आता है कि ईसा की छठी-सातवीं शताब्दी से लेकर ईसा की पन्द्रहवीं शताब्दी के अन्त तक दक्षिण भारत में जैनधर्म पर एक के पश्चात् उत्तरोत्तर अनेक बार भीषण प्रहार किये गये। लगातार लगभग नौ सौ वर्षों के जैन विरोधी अभियानों के परिणामस्वरूप तमिलनाडु में मात्र एक उत्तरीय पारकाट सम्भाग को छोड़कर शेष पूर्ण तमिलनाडु प्रदेश में एक भी जैनधर्म का उपासक अवशिष्ट नहीं रहा, आन्ध्रप्रदेश में तो. जैनधर्म का नाम तक लेने वाला कोई व्यक्ति बचा नहीं रहा और कर्नाटक प्रदेश में, जहां जैन बहुसंख्यक थे वे एक प्रकार से नगण्य अल्पमत में अवशिष्ट रहे ।
1.
The Indian Antiquery. Vol. II, on the colossal Jain Statue at Karkala in the Soutb Kanara district by A. C. Bornell, Esq., M.C.S., M.R.A.S. Page 353-4.
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