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________________ सामान्य श्रुतधर काल खण्ड २ ] दक्षिण में जैन संघ पर... [ २१७ their subjects belonging to different religions and faiths, be they Hind us of different sects.'' इसका हिन्दी अनुवाद इस प्रकार है :-- अल्पसंख्यकों को बुक्कराय द्वारा दिया गया संरक्षण विजयनगर के महाराजा बुक्कराय के शासनकाल की एक राष्ट्रीय स्तर की महत्त्वपूर्ण घटना से महाराजा बुक्कराय की सामाजिक एवं धार्मिक न्याय सम्बन्धी अत्यन्त उदारतापूर्ण वृत्ति प्रकाश में आती है । वह घटना है जैन, रामानुज संघर्ष की समस्या का समाधान करने वाला बुक्कराय का अनुशासन । बुक्कराय के शासनकाल में जैनों और रामानुजाचार्य के अनुयायी श्री वैष्णवों के बीच अपनेअपने अधिकारों, सुविधाओं और धार्मिक अनुष्ठानों के प्रश्न को लेकर बड़ा संघर्ष उत्पन्न हुआ । जैन धर्मावलम्बी, जो कि उस समय अल्पसंख्यक हो चुके थे, श्री वैष्णवों द्वारा जो कि उस समय जैनों से बहुत बड़ी संख्या में हो गये थे, सताये जाने लगे। इस पर पीड़ित जैनों ने विजयनगर के सार्वभौम सत्ता सम्पन्न महाराजा बुक्कराय के समक्ष न्याय की याचना के साथ अपना पक्ष रखा। महाराजा बुक्कराय ने दोनों ही धर्मावलम्बियों के प्रमुख प्रतिनिधियों को अपनी न्याय सभा में बुलाया । महाराजा बुक्कराय के न्याय को सुनने के लिये सभी वर्गों के प्रजाजन भी बहुत बड़ी संख्या में बुक्कराय की न्याय सभा में उपस्थित हुए । दोनों पक्षों को बड़े ध्यानपूर्वक सुनने के पश्चात् महाराजा बुक्कराय ने अपना निर्णय सुनाया, जिसमें सबसे बड़ी महत्त्वपूर्ण बात यह थी कि बहुसंख्यक समुदाय के लोगों का यह सबसे बड़ा प्राथमिक कर्त्तव्य स्थापित किया गया कि वे अल्पसंख्यक वर्गों के लोगों के अधिकारों, उनकी सुविधाओं और उनके हितों की रक्षा करे। दूसरे शब्दों में यदि कहा जाय तो अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा करने वाली वह एक राजकीय घोषणा थी। __संसार के इतिहास में इस प्रकार के उदाहरण अन्यत्र अलभ्य हैं जिसमें कि विभिन्न धर्मावलम्बियों के संघर्ष को, कलह को शान्त करने वाला इस प्रकार का सबको समान न्याय देने वाला निर्णय दिया गया हो। सार्वभौम सत्ता सम्पन्न महाराजा बुक्कराय द्वारा दिया गया यह निर्णय उनके महान् उदारतापूर्ण बुद्धिकौशल का एक अतीव आदर्श एवं प्रत्येक के लिये अनुकरणीय उदाहरण है। . महाराजा बुक्कराय का यह ऐतिहासिक निर्णय बड़ा ही प्रभावपूर्ण सिद्ध हा। इससे विजयनगर साम्राज्य की विशाल सीमानों में रहने वाले प्रजाजनों में विभिन्न जातियों, वर्गों एवं धर्मावलम्बियों में परस्पर धार्मिक सहिष्णुता, पारस्परिक सौहार्द्रपूर्ण प्रीति का पुनः प्राबल्य के साथ प्रादुर्भाव हुआ । महाराजा - 1. A History of Karnataka, by Dr. P. B. Desai, page 342. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002074
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1995
Total Pages880
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
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