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सामान्य श्रुतधर काल खण्ड २ ]
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मन्दिरों को नहीं तोड़ा । इसका कारण बताते हुए उसने ( महमूद ने ) अपने गजनी के हाकिम को लिखा था :
"यहां (मथुरा में ) असंख्य मन्दिरों के अतिरिक्त १००० प्रासाद मुसलमानों के ईमान के समान दृढ़ हैं । उनमें से कई तो संगमरमर के बने हुए हैं, जिनके बनाने में करोड़ों दीनार खर्च हुए होंगे । ऐसी इमारतें यदि २०० वर्ष लगें तो भी नहीं बन सकतीं । १"
महमूद गजनवी ने वि० सं० १०८२ में सोमनाथ मन्दिर की अपार धनराशि को लूटने और वहां की उस समय की सर्वाधिक चमत्कारिक मानी जाने वाली सोमनाथ की मूर्ति को तोड़ने के लक्ष्य से सोमनाथ पर मुलतान और उससे आगे के जनशून्य रेगिस्तान के मार्ग से आक्रमण किया । उसके साथ की विशाल सेना में ३० हजार चुने हुए घुड़सवार थे। रेगिस्तानी मार्ग में अन्न-जल के दर्शन तक दुर्लभ थे अतः उसने ३० हजार ऊंटों पर विपुल मात्रा में अन्न एवं जल का संग्रह कर सोमनाथ की ओर प्रयाण किया । वह पौष मास के शुक्ल पक्ष में गुरुवार के दिन सोमनाथ पहुंचा ।
फिरिश्ता के उल्लेखानुसार विशाल गुर्जर राज्य का महाराजा भीमदेव प्रथम ( वि० सं० १०७६ - ११२६ ) सोमनाथ के मन्दिर की रक्षा के लिये अपनी सेना के साथ सोमनाथ पहुंचा । दूसरे दिन शुक्रवार को महमूद ने समुद्र तट पर अवस्थित सुदृढ़ किले पर आक्रमण किया। बड़ी भयंकर लड़ाई हुई । इस युद्ध में सोमनाथ की रक्षार्थ एकत्रित हुए योद्धाओं ने महमूद की सेना पर शस्त्रास्त्रों के भीषण प्रहार किये । अपनी अत्यधिक सैनिक क्षति होती देख महमूद के सैनिक सीढ़ियां लगाकर किले पर चढ़ गए। फिरिश्ता के उल्लेखानुसार सोमनाथ की रक्षार्थ आए हुए अनहिलवाड़े के महाराजा भीमदेव ने ३००० मुसलमान सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया । इस किले पर विजय प्राप्त करने के लिए मुसलमानों ने दीन की पुकार कर अपनी पूरी ताकत बताई तो भी महमूद के इतने सैनिक मारे गए कि युद्ध का परिणाम संदेहास्पद प्रतीत होने लगा । २ रात्रि हो जाने के कारण उस दिन की लड़ाई बन्द कर दी गई और दूसरे दिन सूर्योदय के साथ ही पुनः घमासान युद्ध प्रारम्भ हुआ । इस युद्ध में भीषण नरसंहार हुआ । मन्दिर की रक्षा के लिए एकत्रित हुए योद्धा बड़े-बड़े झुण्डों में मन्दिर में जाकर रो-रो कर प्रार्थना करने लगे और प्रार्थना के पश्चात् अन्तिम श्वास तक मन्दिर की रक्षा के लिए लड़ते रहे । अन्ततोगत्वा भीषण नरसंहार के पश्चात् महमूद सोमनाथ के मन्दिर में प्रविष्ट हुआ । मन्दिर में सीसे से मढ़े सागवान के ५६ स्तम्भ थे । सोमनाथ की
१.
२.
ब्रिग, फिरिश्ता, जि० १, पृ० ५८-५६
वही
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