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________________ २०२ ] [ जैन धर्म का मौलिक इतिहास-भाग ४ मूर्ति ठोस पत्थर की थी, जो पांच हाथ ऊंची, दो हाथ पृथ्वी में गड़ी हुई थी। उसकी परिधि ३ हाथ थी। वह मूर्ति एक अन्धेरे कमरे में थी, जिसमें रत्नजटित दीपकों का प्रकाश रहता था । मूर्ति के निकट २०० मन तोल की सोने की शृखला थी जिसमें घण्टे लटकते थे, जिन्हें एक-एक प्रहर के अन्तर से स्वर्णशृखला को हिला-हिला कर बजाया जाता था। मूर्ति के कमरे के पास ही भण्डार था, जिसमें सोने तथा चांदी की बहुत सी मूर्तियां और बहुमूल्य रत्नों से जटित वस्त्र थे। महमूद ने गुर्ज से मूर्ति को तोड़ा । उसका एक हिस्सा उसने वहीं जलवा दिया और दूसरा हिस्सा वह लूट में सोमनाथ के मन्दिर से प्राप्त हुए सोना, चांदी, रत्नराशि आदि बहुमूल्य वस्तुओं के साथ गजनी ले गया और सोमनाथ की मूर्ति के उस टुकड़े से वहां की जामे मस्जिद के दरवाजे की एक सीढ़ी बनवाई। ____सोमनाथ पर महमूद गजनवी द्वारा किए गए इस भीषणतम जनसंहारकारी आक्रमण में कुल मिलाकर ५० हजार से भी अधिक भारतवासियों को अपने प्राणों की बलि देनी पड़ी और २० लाख दीनार से भी अधिक मूल्य का माल महमूद गजनवी के हाथ लगा । जिसे वह अपने साथ गजनी ले गया।' इस प्रकार भारत को जन-धन की अपूरणीय महती क्षति किन कारणों से उठानी पड़ी ? अपने ही देश में, विपुल जन-धन शक्ति का सद्भाव होते हुए भी भारतवर्ष के निवासी बाहर से आये हुए आततायियों के हाथों भेड़-बकरी की भांति मौत के घाट किन कारणों से उतार दिये गए ? महमूद गजनवी के आक्रमणों के पश्चात् शहाबुद्दीन गौरी द्वारा भी भारत पर आक्रमण किए गए। शहाबुद्दीन गौरी के आक्रमणों के पश्चात् तो भारत पर मुसलमानों के आक्रमणों का तांता सा लग गया। मुसलमानों द्वारा भारत पर किये गए उन आक्रमणों में भारतवासियों को बारम्बार कत्लेग्राम-सामूहिक जनसंहार, सामूहिक बलात्धर्म-परिवर्तन आदि का शिकार क्यों होना पड़ा, यह प्रश्न प्रत्येक भारतीय के हृदय को शताब्दियों से कचोटता हुआ उसके अन्तर में कभी शान्त न होने वाली टीस उत्पन्न करता चला पा रहा है । साधारण से साधारण व्यक्ति भी यह सोचता है कि जो भारत, प्राध्यात्मिक, सांस्कृतिक, शैक्षणिक, राजनैतिक और विश्व-कल्याणकारिणी रीतिनीतियों अथवा गतिविधियों के क्षेत्र में सहस्राब्दियों पर्यन्त विश्व का नायक रहा, उसका विक्रम की दशवीं-ग्यारहवीं शताब्दी का प्रादुर्भाव होते ही इस प्रकार की विपरीत एवं दयनीय दशा के रूप में कायापलट किन कारणों से और क्यों हो गया। भारतीय इतिहास की अतीत में घटित हई आत्यन्तिक ऐतिहासिक महत्त्व की घटनाओं के परिप्रेक्ष्य में तटस्थ दृष्टि से गहन चिन्तन के अनन्तर भारत और भारतीयों को इस प्रकार की असमंजसपूर्ण दयनीय दुर्दशा में पहुंचाने वाला निम्नलिखित केवल १ राजपूताने का इतिहास, पहली जिल्द, पृष्ठ २६३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002074
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1995
Total Pages880
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
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