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________________ २०० ] [ जैन धर्म का मौलिक इतिहास -- भाग ४: सिन्ध युद्ध में घटित हुई एक अत्यन्त दुर्भाग्यपूर्ण घटना की पुनरावृत्ति हो गई। जलते हुए नफ्थे से संयुक्त एक तीर राजा आनन्दपाल के हाथी के कपोल में गहराई तक आ घुसा । तीर के गहरे घाव के साथ ही साथ नफ्थे की दुस्सह य दाहक ज्वालाओं से संत्रस्त हो आनन्दपाल का हाथी कर्णवेधी चिंघाड़ करता हुआ रणांगरण से भाग निकला। इस अप्रत्याशित घटना से हड़बड़ा कर राजा के हाथी के प्रागे, पीछे और दोनों पावों में लड़ रहे भारतीय सैनिक भी युद्ध भूमि से भाग खड़े हुए। भारतीय सेनाओं ने समझा कि राजा आनन्दपाल रण में पीठ दिखा कर भाग गया है । इस आशंका से अभिभूत हो उपर्युल्लिखित छहों राजाओं की सेनाएं भी रणभूमि से पलायन करने लगी और इस प्रकार कुछ ही क्षणों के अनन्तर प्राप्त होने वाली विजयश्री के स्थान पर भारत की सेनाओं को प्रबल सैन्य शक्ति के होते हुए भी पराजय प्राप्त हुई। महमूद को अतुल धन-सम्पदा के साथ ही प्रचुर मात्रा में हाथी प्रादि सैनिक साज-बाज और युद्ध सामग्री प्राप्त हुई। वि० सं० १०७५ में महमूद गजनवी ने कन्नोज पर आक्रमण कर वहां के राजा राज्यपाल को अपने अधीन किया, जिससे उसे प्रचुर मात्रा में धन-सम्पत्ति प्राप्त हुई। तदनन्तर उसने यमुनातट पर बसे महावन पर आक्रमण किया। वहां के राजा कुलचन्द्र ने शत्रु से युद्ध करने के लिये सेना के साथ प्रयारण तो किया किन्तु शत्रु की सैन्य शक्ति के समक्ष अपनी सैन्य शक्ति को अपर्याप्त समझ पराजय के कलंक से बचने के लिये अपने परिवार को मार कर शत्रु से युद्ध करने से पूर्व ही आत्मघात कर लिया। महावन की लूट में महमूद को ८० हाथी और विपुल धनराशि मिली। ___ महावन को लूटने के पश्चात् महमूद ने मथुरा पर आक्रमण किया। उस समय मथुरा पर वारण (बुलन्द शहर) के डोडिया जाति के हरदत्त नामक राजा का शासन था। थोड़े से सैनिकों के अतिरिक्त महार्घ य मूर्तियों एवं अद्भुत कलाकृतियों के केन्द्र अथवा प्रतीक स्वरूप मथुरा जैसे नगर की सुरक्षा का कोई समुचित प्रबन्ध नहीं था । अतः नाम मात्र की छोटी सी लड़ाई के अनन्तर ही महमूद गजनवी ने मथुरा पर सहज ही अधिकार कर लिया। महमूद ने बिना किसी उल्लेखनीय प्रतिरोध के, सोने और चांदी की मूर्तियों को तोड़ा । उन मूर्तियों में जड़े हुए अनमोल लाल, पन्ने, हीरे आदि रत्नों को महमूद ने अपने अधिकार में लिया। मथुरा के सभी मन्दिरों की मूर्तियों को गलवा कर उसने मणों सोना और चांदी की शिलाएं हस्तगत की। इस प्रकार लूट में प्राप्त हुई अपार धन-सम्पदा साथ लिये वह गजनी की ओर लौटा और मार्ग में जितने भी मंदिर मिले उन्हें एवं उनकी मूर्तियों को तोड़ा। . यहां यह उल्लेखनीय है कि मथुरा में महमूद ने मूर्तियां तो इतनी तोड़ी कि उनके गलाने पर सोने और चांदी के विशाल ढेर लग गये किन्तु उसने मथुरा के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002074
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1995
Total Pages880
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
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