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________________ सामान्य श्रुतधर काल खण्ड २ ] [ १६६ हुए राजा जयपाल को तीन महीने बन्दी रखने के पश्चात् मुक्त करते समय उससे दण्ड के रूप में यथेच्छ धन भी प्राप्त किया। महमूद की कैद से मुक्त होने पर राजा जयपाल ने अपने पुत्र को अपना राज्य संभला कर उस समय तक क्षत्रिय राजाओं में प्रचलित पारम्परिक रीतिनीति का अनुसरण करते हुए दो बार युद्ध में पराजित हो जाने के कारण अग्नि में प्रवेश कर अपना प्राणान्त किया। इस घटना के कतिपय वर्ष पश्चात् मुल्तान के अबुल फतह दाऊद नामक शासक ने अपने आपको स्वतन्त्र घोषित कर महमूद को खिराज देना बन्द कर दिया। महमूद जिस समय दाऊद पर आक्रमण करने आया, उस समय आनन्दपाल ने महमूद से प्रतिशोध लेने के लिये दाऊद की सहायता की। इससे क्रुद्ध हो महमूद ने वि० सं० १०६६ में आनन्दपाल के विरुद्ध सैनिक अभियान किया। उस समय तक भारत के अनेक राजाओं के मानस में इस प्रकार की उत्कट भावना जागृत हो चुकी थी कि मुसलमानों के राज्य को येन केन प्रकारेण भारत से उखाड़ फेंकने के लिये एक जुट हो युद्ध किया जाय । आनन्दपाल ने भारत के विभिन्न राजाओं के पास अपने दूत भेज कर महमूद के सैनिक अभियान को विफल एवं उसकी सैनिक शक्ति को नष्ट करने हेतु उनसे सैनिक सहायता मांगी। मुस्लिम आततायी को सदा के लिये भारत से खदेड़ देने की एक लहर सी भारतीयों के मानस में तरंगित हो उठी थी। तदनुसार भारत के विभिन्न भागों से महिलाओं ने भी अपने अपने जेवर बेच कर धनराशि एकत्रित की और महमूद के सैनिक अभियान के विरुद्ध युद्ध हेतु वह राशि आनन्दपाल के पास सहायता के रूप में भेजी। तीस हजार गक्खर योद्धा भी महमूद को रणांगण में परास्त करने के दृढ़ संकल्प के साथ आनन्दपाल की सहायता के लिये, उसकी सेना के साथ प्रा मिले। उज्जैन, ग्वालियर, कालिंजर, कन्नोज, दिल्ली और अजमेर के शासक भी अपनी सेनाओं के साथ आनन्दपाल की सहायतार्थ महमूद से युद्ध करने के लिये आ उपस्थित हुए। भारतीय सेनाओं ने लगभग ४० दिन तक पेशावर के पास शिविर डाले रखे । लम्बी प्रतीक्षा के पश्चात् महमूद की सेना भारतीय सेना के सम्मुख आई और महमूद ने अपने धनुर्धारियों को आज्ञा दी कि जाज्वल्यमान नफ्थों से संयुत तीरों की वर्षा से वे भारतीय सेना में भगदड़ उत्पन्न कर दें। ३० हजार गवखर योद्धाओं ने बड़ी वीरता से निरन्तर आगे बढ़ते रह कर महमूद के धनुर्धारियों को परास्त कर पीछे की ओर खदेड़ दिया और महमूद की सेना के मध्यभाग तक पहुंच कर शत्रुसेना का संहार करने लगे । उस भीषण संग्राम में शौर्यशाली गक्खर योद्धाओं ने थोड़े से ही समय में महमूद की सेना के ५००० योद्धाओं को मौत के घाट उतार दिया । विजयश्री भारतीयों के हाथ लगने ही वाली थी कि सहसा, महमूद के इस आक्रमण से २६७ वर्ष पूर्व वि० सं० ७६६ में सिन्ध के राजा दाहिर और अरब सेनापति कासिम के बीच Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002074
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1995
Total Pages880
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
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