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भ० महावीर के ५०वें पट्टधर प्रा० श्री विजयऋषि के
प्राचार्यकाल को राजनैतिक स्थिति
" श्रमण भ० महावीर के ५०वें पट्टधर प्रा० श्री विजयऋषि के प्राचार्यकाल (वीर नि० सं० १५२४-१५८६) में महमूद गजनवी ने वि० सं० १०५८ से १०८७ के बीच की २६ वर्ष की अवधि में भारत पर १७ बार आक्रमण कर भारत के अनेक भागों के जनजीवन को अस्तव्यस्त एवं भयत्रस्त कर दिया। अपने पहले सैनिक अभियान में ही महमूद गजनवी को रत्नजटित अनमोल आभरणों, स्वर्ण, हाथी आदि के रूप में अपार धन-सम्पदा प्राप्त हुई। अतः भारत को सोने के चिड़िया समझ कर भारत के धन से अपने देश को समृद्ध एवं सम्पन्न (मालामाल) बनाने के लिये उसने कुल मिला कर १७ बार भारत के विभिन्न भागों पर आक्रमण किये
और खुलकर जी भर लूट-खसोट की। भारत पर किये गये उन अपने सैनिक अभियानों में महमूद गजनवी ने न केवल भारत की सम्पत्ति लूटकर अपने देश को समृद्ध ही किया अपितु भारत के अनेक पवित्र तीर्थस्थानों-मन्दिरों को भूमिसात् करने के साथ-साथ सहस्रों मूर्तियों को तोड़ा और भीषण जनसंहार कर अनेक नगरों एवं ग्रामों के निवासियों को बलात् धर्मपरिवर्तन के लिये बाध्य भी किया।
महमूद के पिता सुबुक्तगीन की मृत्यु के पश्चात् लाहोर के राजा जयपाल ने वि० सं० १०३४ में स्वीकार की गई गजनी की अधीनता से मुकर एवं अपने आपको स्वतन्त्र घोषित कर गजनी की हुकूमत को खिराज आदि देना बन्द कर दिया । इससे रुष्ट हो महमूद ने वि० सं० १०५८ में एक बड़ी सेना ले लाहोर की ओर प्रयाण किया। लाहोर के राजा जयपाल ने भी एक शक्तिशाली सेना के साथ, जिसमें ३०० हाथियों की सेना भी सम्मिलित थी, पेशावर के पास महमूद गजनवी की सेना का मार्ग रोका। दोनों सेनाओं के बीच भयंकर युद्ध हुआ। अग्निवर्षक नफ्थों के प्रहारों से राजा जयपाल के ५००० योद्धा वीरगति को प्राप्त हुए। घोर संग्राम के पश्चात् महमूद ने राजा जयपाल को उसके भाई पुत्र आदि १५ आत्मीय जनों के साथ बंधुआ बना लिया। महमूद गजनवी को इस लूट में, अत्यधिक विपुल मात्रा में सम्पदा मिली, जिसमें १६ रत्नजटित बहुमूल्य कण्ठे भी थे। महमूद ने रत्नपारखी जौहरियों को बुला कर, उन कण्ठों के मूल्य के सम्बन्ध में उनसे पूछा। जौहरियों ने सभी भांति परीक्षणों के अनन्तर उन सोलह कण्ठों में से एक कण्ठे का मूल्य एक लाख ८० हजार स्वर्ण दीनार के बराबर प्रांका । “द्वात्रिंशदत्तिकापरिमितं कांचनं इति भरतः' इस उल्लेखपूर्वक शब्दकल्पद्रुम में एक दीनार का भार ३२ रत्ती माना गया है । लूट में प्राप्त हुई इस सम्पत्ति के अतिरिक्त महमूद ने बन्दी बनाये
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