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पूर्व पीठिका
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५८४ तक (४१३ वर्ष) की, और वीर निर्वारण सम्वत् ५८४ से १००० वर्ष तक ४१६ वर्ष की अवधि सामान्य पूर्वधर काल की रही है ।
इस प्रकार इस द्वितीय भाग में वीर निर्वाण सम्वत् १ में वीर प्रभु के पट्ट पर आसीन हुए उनके प्रथम पट्टधर आर्य सुधर्मा से लेकर वीर निर्वाण सम्वत् १००० में स्वर्गस्थ हुए अन्तिम पूर्वघर आर्य देवगिरिण क्षमाश्रमण के प्राचार्य काल तक का एक हजार वर्ष के जैनधर्म के इतिहास के साथ-साथ तत्कालीन राजनैतिक और सामाजिक दशा का इतिहास प्रस्तुत किया गया है । वीर निर्वाण की तृतीय शती के चतुर्थ दशक के आस-पास आर्य महागिरि एवं प्रार्य सुहस्ती के समय की एक ग्राघ अपवादिक घटनाओं को और वीर निर्वारण सं० ६०६ के प्रास-पास भगवान् महावीर के संघ में दिगम्बर, यापनीय और तदनन्तर नियत निवासी शिथिलाचारोन्मुखी चैत्यवासी परम्परानों के बीज वपन के उपरान्त भी श्रमण भगवान् महावीर का धर्मसंघ वस्तुतः एकता के सूत्र में आबद्ध रह अपनी विशुद्ध एवं मूल शास्त्रीय परम्परा के प्रचार-प्रसार के माध्यम से जन-जन का कल्याण करता हुआ एक महानदी के प्रवाह तुल्य गति से गतिशील रहा ।
द्वितीय भाग के प्रालेखन के समय भी गहन शोध के अनन्तर अनेक ऐतिहासिक तथ्यों पर प्रकाश डालने के साथ-साथ अनेक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक उपलब्धियां प्रवाप्त की गईं, जिनमें सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण निम्नलिखित रूप में उल्लेखनीय हैं :
१.
३.
अन्तिम चतुर्दश पूर्वधर अथवा श्रुतकेवली भद्रबाहु उन निर्युक्तियों के रचनाकार नहीं थे, जो वर्तमान काल में उपलब्ध हैं । वस्तुत: इन नियुक्तियों के निर्माता देवगिरिण क्षमाश्रमण के स्वर्गस्थ होने के पश्चात् अपने संघ के साथ दक्षिण की ओर विहार कर वहीं विचरण करने वाले और श्रमण बेलगोल में स्वर्गस्थ होने वाले निमित्तज्ञ भद्रबहु (द्वितीय) थे ।
अन्तिम श्रुतकेवली भद्रबाहु ( प्राचीन गोत्रीय ) दुष्काल के समय दक्षिण की ओर नहीं, अपितु नेपाल की ओर गये थे ।
अन्तिम चतुर्दश पूर्वघर प्राचार्य भद्रबाहु के पास मौर्य राजवंश के संस्थापक सम्राट् चन्द्रगुप्त दीक्षित नहीं हुए । वस्तुतः ऐतिहासिक तथ्य इस बात के साक्षी हैं कि वे दोनों समकालीन नहीं थे । अन्तिम श्रुतकेवली प्राचार्य भद्रबाहु का स्वर्गवास दिगम्बर परम्परा की मान्यतानुसार वीर निर्वाण सम्वत् १६३ में हुआ, जबकि मौर्य चन्द्रगुप्त ने वीर निर्वारण सम्वत् २१५ के आसपास नन्दवंश के अन्तिम मगध सम्राट् नवम नन्द को युद्ध में परास्त कर मगध साम्राज्य के सिंहासन पर आरूढ़ हो मौर्य साम्राज्य की स्थापना की ।
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