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________________ सामान्य श्रुतधर काल खण्ड २ ] द्रोणाचार्य [ १८६ बड़े प्रभावित हुए । उन्होंने अभयदेवसूरि को दूसरे दिन अभ्युत्थान पूर्वक बड़ा ही सम्मान दिया और उन्होंने अभयदेवसूरि से कहा-"आप जितनी भी वृत्तियों का निर्माण करेंगे उन सब वृत्तियों का मैं संशोधन करूंगा।" खरतरगच्छ वृहद् गुर्वावली के उपरिवरिणत उल्लेख के अन्तिम अंश की पुष्टि स्वयं आचार्य अभयदेवसूरि ने स्थानाङ्गवृत्ति, ज्ञाताधर्म कथाङ्गवृत्ति और औपपातिक सूत्रवृत्ति की प्रशस्तियों में की है । उन्होंने स्पष्ट शब्दों में लिखा है कि निर्वृत्ति कुल के प्रमुख आचार्य द्रोणसूरि ने मेरी इन वृत्तियों का संशोधन किया । नवाङ्गी वृत्तिकार द्वारा किये गये इस प्रकार के उल्लेख से खरतरगच्छ की गुर्वावली के उपरिलिखित विवरण की भी पुष्टि होती है। किसी प्रकार को शंका को अवकाश नहीं रह जाता। द्रोणाचार्य जैसे अपने समय के एक आगमज्ञ प्राचार्य के केवल उपरिवणित परिचय से किसी भी शोधप्रिय विज्ञ को संतोष नहीं हो सकता । इसी बात को ध्यान में रखते हुए इनके विशेष परिचय को खोज निकालने के प्रयास में प्राचार्य प्रभाचन्द्रसूरि द्वारा रचित प्रभावक चरित्र में द्रोणाचार्य के सम्बन्ध में एक उल्लेख दृष्टिगोचर हुआ, जिसमें यह बताया गया है कि अणहिल्लपुरपट्टण में गुर्जरेश्वर भीम नामक राजा था। उसके राजगुरु का नाम द्रोणाचार्य था। उन आचार्य द्रोण का जन्म क्षत्रिय कुल में हुआ और वे राजा भीम के मामा (मातुल) थे। द्रोणाचार्य ने बाल्यावस्था में ही श्रमण धर्म की दीक्षा ग्रहण करली और वे प्राचार्यपद पर प्रतिष्ठित हुए। प्रभावक चरित्र में उपलब्ध इस उल्लेख से यह अनुमान किया जाता है कि चैत्यवासी परम्परा के प्राचार्य द्रोण जिनका यत्किंचित परिचय ऊपर दिया जा चुका है, वे ही प्रभावक चरित्र में वरिणत क्षत्रिय कुलोत्पन्न द्रोणाचार्य हो सकते हैं । चालुक्यराज महाराजा भीम के समय में ही नहीं अपितु भीम से शताब्दियों पूर्व और शताब्दियों पश्चात् भी द्रोणाचार्य नामक किसी अन्य प्राचार्य का जैन साहित्य में नामोल्लेख तक उपलब्ध नहीं होता । एक सबसे बड़ी कठिनाई, प्रभावक चरित्रकार द्वारा वरिंगत द्रोणाचार्य और खरतरगच्छ वृहद् गुर्वावली एवं अभयदेवसूरि द्वारा उल्लिखित द्रोणाचार्य के एक होने में, यह उपस्थित होती है कि प्रभावक चरित्रकार ने सूराचार्य नामक एक प्रभावक प्राचार्य को द्रोणाचार्य का पश्चाद्वर्ती और उनका अपना शिष्य प्राचार्य बताया है। इसके विपरीत खरतरगच्छ वृहद् गुर्वावली में सूराचार्य को द्रोणाचार्य का पूर्ववर्ती प्राचार्य बताया है । उक्त पट्टावली में उल्लिखित सूराचार्य और द्रोणाचार्य के नाम को देख कर पाठक को सहज ही यह आभास होने लगता है कि द्रोणाचार्य इनसे पूर्व में वर्णित सूराचार्य के शिष्य थे। सूराचार्य और द्रोणाचार्य इन दोनों का एक साथ जुड़ा हुआ उल्लेख प्रभावक चरित्र और खरतरगच्छ वृहद् गुर्वावली के अतिरिक्त जैन साहित्य में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002074
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1995
Total Pages880
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
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