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सामान्य श्रुतधर काल खण्ड २ ]
अभयदेवसूरि
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में आने का इंगित किया । अपने पाराध्य आचार्य देव का इंगित पाते ही वे श्रावक तत्काल अभयदेवसूरि की सेवा में उपस्थित हुए और समय पर अपने न पा सकने के लिये शोक प्रकट करते हुए बोले - "गुरुदेव ! अाज हमें अतीव शोकप्रद समाचार मिले हैं कि बहुमूल्य क्रयाणक से लदे हमारे जहाज संभवत: समुद्र में डूब गये हैं। इसी अप्रत्याशित अपूरणीय क्षति के समाचार से सागर में निमग्न हमारे जलपोतों की भांति हमारे मन-मस्तिष्क भी असन्तुलित एवं अस्त-व्यस्त हो शोक सागर में निमग्न हो गये हैं । यही कारण है कि खाने-पीने के साथ ही हम लोग अपने ईश्वर तुल्य आराध्य देव के दर्शन करना भी भूल गये थे। अब अपने आशा केन्द्र प्राप श्री के प्रशान्त सुधासागरोपय शान्तिप्रदायक तपोपूत मुखारविन्द के दर्शन कर शोकसागर से उबर प्रशान्त सुधासागर में निमग्न हो गये हैं। हे क्षमासागर देव ! अपने इन अज्ञ दासों के अपराध को क्षमा प्रदान कर दीजिये।" यह कहते हुए वे श्रद्धालु श्रावक अभयदेवसूरि के चरणों पर लोट-पोट हो गये।
अपने पुण्डरीक पुष्पोपम लोचन युगल को निमीलित कर प्राचार्यश्री अभयदेवसूरि क्षण भर ध्यानमुद्रा में चिन्तन करने के अनन्तर अपने कमल दलायत विस्फारित नेत्र युगल से सुधावृष्टि करते हुए बोले :--- "इस विषय में तो आप लोगों को किञ्चित्मात्र भी चिन्तित होने की आवश्यकता नहीं है।" .
अपने अगम ज्ञानी आराध्य आचार्यदेव अभयदेवसूरि के आध्यात्मिक तपोपूत अन्तस्तल से उद्गत अमृतोपम उद्गारों को सुनकर श्रद्धालु श्रावकों के मन मयूर घनगर्जन से मत्त बने मयूरों की भांति अानन्दविभोर हो नाच उठे। वे सब पूर्णतः आश्वस्त हो गये । दूसरे दिन ही उनके सब जलपोत सकुशल आ गये। "हर्षविभोर कृतज्ञ श्रावक गुरु-सेवा में उपस्थित हुए। “सौ सयाने एक मता" की सूक्ति को चरितार्थ करते हुए वे सब श्रावक समवेत स्वरों में बोले-'भविष्यज्ञ भगवन् ! जलपोतों में लदापद भरे क्रयाणकों से हम लोगों को जितना लाभ होगा, उसके अर्द्धाश से हम नवांगी वृत्तियों की प्रतिलिपियों का आलेखन करवायेंगे।"
अभयदेवसूरि ने अपने श्रद्धालु श्रावकों के संकल्प का समादर करते हुए कहा-"श्रावकोचित् सत्कार्य करने की अापकी शुभभावना अन्ततोगत्वा आपके लिये मुक्ति का साधन बनेगी । शुभ कार्य तो अवश्यमेव करना ही चाहिये।"
खरतरगच्छ वृहद् गुर्वावली में स्पष्ट शब्दों में यह तो नहीं लिखा है कि उन श्रावकों ने नवांगी वृत्तियों का आलेखन करवाया किन्तु उक्त विवरण से यह निष्कर्ष निकलता है कि पाल्हउदा (संभवतः प्रभावक चरित्रकार द्वारा उल्लिखित पल्यपद्रपुर) ग्राम अथवा नगर के श्रावकों ने अपने उन जलपोतों में आये हुए क्रयाणकों से अजित लाभ के अर्द्धाश से नवाङ्गी वृत्तियों की प्रतिलिपियों का आलेखन करवाया, जिन जलपोतों के सागर में डूबने के समाचार के अनन्तर अभय
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