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________________ १५८ ] [ जैन धर्म का मौलिक इतिहास-भाग ४ के संशोधक के रूप में साभार स्मरण किया है।' इसी प्रकार विपाक सूत्र वृत्ति की प्रशस्ति में भी अभयदेवसूरि ने द्रोणाचार्य का इस वृत्ति के संशोधक के रूप में बड़े आदर के साथ स्मरण किया है। ___ यह जानकर न केवल सुविहित परम्परा के अनुयायियों अथवा उपासकों को ही, अपितु प्रत्येक जैन धर्मावलम्बी को सम्भवतः आश्चर्याभिभूत होना पड़ेगा कि जिन द्रोणाचार्य का अभयदेयसूरि ने अपनी कतिपय वृत्तियों के संशोधक के रूप में स्मरण किया है, वे द्रोणाचार्य चैत्यवासी परम्परा के प्राचार्यथे । इस तथ्य को प्रकट करते हुए खरतरगच्छ वृहद् गुर्वावलीकार ने लिखा है : "११-तस्मिन् प्रस्तावे देवगृहनिवास्याचार्यमुख्यो द्रोणाचार्योऽस्ति । तेनाऽपि सिद्धान्तो व्याख्यातुसमारब्धः । सर्वेऽप्याचार्याः कपलिकां गृहीत्वा श्रोतु समागच्छन्ति । तथाऽभयदेवसूरिरपि गच्छति । स चाचार्य आत्मसमीपे निषद्यां दापयति । यत्र तत्र व्याख्यानं कुर्वतस्तस्य सन्देह उत्पद्यते, तदा नीचैः स्वरेण तथा कथयति यथाऽन्ये न शण्वन्ति । अन्यस्मिन् दिने यद् व्याख्यायते सिद्धान्तस्थानं तवृत्तिरानीता । एतां चिन्तयित्वा व्याख्यायन्तु भवन्तः । यस्तां पश्यति सार्थकां, तस्याऽऽश्चयं भवति; विशेषेण व्याख्यातुराचार्यस्य । स चिन्तयति-कि साक्षादगरधरैः कृताऽथवाऽनेनाऽपि, तस्मिन् विषयेऽतीवादरो मनसि विहितः । द्वितीय दिने सम्मुखमुत्थातु प्रवृत्तः । द्रोणाचार्येणाऽभारिण श्रीमदभयदेवसूरीणामग्रे—'या वृत्तीः सिद्धान्ते करिष्यसि ताः सर्वा मया शोधनीया लेखनीयाश्च ।'3 इससे स्पष्ट रूप से यह प्रकट होता है कि द्रोणाचार्य जो न केवल उस समय तक महावर्चस्वशालिनी चैत्यवासी परम्परा के सर्वाधिकार सम्पन्न प्रमुख प्राचार्य ही थे, अपितु वे अपहिलपुर पट्टणनगर के महान् जैन संघ के प्रमुख थे, उन्होंने अभयदेवसूरि द्वारा रचित नौ अंगों की वृत्तियों में से कतिपय वृत्तियों का संशोधन किया। १. निर्वृत्तक कुल नभस्तलचन्द्रद्रोणाख्यसूरिमुख्येन । पंडितगुणेन गुणवत्प्रियेण संशोधिता चेयम् ।।१०।। ___-ज्ञाता धर्मकथांग वृत्ति प्रशस्ति । २. प्रणहिलपाटकनगरे श्रीमद् द्रोणाख्यसूरिमुख्येन । पंडितगुणेन गुणवत्प्रियेण संशोधिता चेयम् ।।३।। -विपाकसूत्र वृत्ति प्रशस्ति । ३. खरतरगच्छ वृहद् गुर्वावली पृष्ठ ७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002074
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1995
Total Pages880
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
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