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सामान्य श्रुतधर काल खण्ड २ } अभयदेवसूरि
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नौ अंगों की प्रभावना की दृष्टि से और इन पर लिखी गई वृत्तियों की परम प्रमाणिकता प्रकट करने के लिये अभयदेवसूरि द्वारा इस प्रकार का उल्लेख किया जाना तो वस्तुतः अनिवार्य रूप से आवश्यक हो जाता । यदि शासन देवी ने इन दोनों ग्रन्थकारों के उल्लेखानुसार अभयदेवसूरि के समक्ष इस प्रकार की प्रतिज्ञा की होती कि स्मरणमात्र से ही सब शंकाओं का समाधान सीमन्धर स्वामी से प्राप्त करवा देंगी, और इस प्रकार की प्रतिज्ञा का वस्तुतः शासनामरी ने निर्वहन किया होता और देवी द्वारा समस्त जिनशासन पर और स्वयं अभयदेवसूरि पर किये गये इस उपकार से उऋण होने के साथ २ इन वृत्तियों के महत्व को परम प्रामाणिक एवं सर्वमान्य सिद्ध करने के लिये भी अभयदेवसूरि द्वारा इस देवी - सहायता का उल्लेख किया जाना न केवल न्यायसंगत अपितु प्रभयदेवसूरि का परम पुनीत परमावश्यक कर्त्तव्य था । यदि अभयदेवसूरि द्वारा यह उल्लेख किया जाता तो आज सम्पूर्ण जैन जगत् के मानस पर इस बात की अमिट छाप अंकित हो जाती कि ये 8 ही वृत्तियां सर्वज्ञ सर्वदर्शी विहरमान तीर्थंकर सीमन्धर स्वामी द्वारा समर्थित होने के कारण संसार में परम प्रामाणिक हैं । शासन-सुरी द्वारा सीमन्धर स्वामी के समक्ष अभयदेवसूरि की कतिपय शंकानों के समाधानार्थ रक्खे जाने की दशा में उन शंकाओं के अतिरिक्त छोटी-बड़ी अन्यान्य सभी प्रकार की शंकाएं त्रिकालदर्शी तीर्थंकर से छिपी नहीं रह सकती थीं । ऐसी स्थिति में अभयदेवसूरि द्वारा शासन देवी के माध्यम से रक्खी गई शंकाओं के साथ-साथ अभयदेवसूरि के अन्तर में उठी हुई सभी छोटी बड़ी शंकाओं का समाधान घट घट के अन्तर्यामी सीमन्धर स्वामी अवश्यमेव कर देते ।
इस प्रकार की स्थिति में सीमन्धर स्वामी द्वारा समर्थित होने के कारण न केवल अंगों की वृतियाँ ही अपितु नवों अंगसूत्रों का प्रत्येक अक्षर परम प्रामारिकता की पराकाष्ठा को भी पार कर जाता और इन सब पर परम प्रामाणिकता की दोहरी छाप अंकित हो जाती ।
नौ अंगों की वृत्तियों के निर्माण जैसे गुरुतर कार्य के निष्पादन में उन्हें सहायता प्रदान करने वाले निवृत्ति कुल के प्रजित सिंह नामक आचार्य के शिष्य यशोदेव गरिएका अभयदेव ने नामोल्लेख किया है ।" यही नहीं, अभयदेवसूरि ने . स्थानांग वृत्ति की प्रशस्ति में " द्रोणाचार्यादिभिः प्राज्ञैरनेकैराद्रितं यतः || ६ ||" इस श्लोकार्द्ध से इस वृत्ति का संशोधन कर इसका समादर करने वाले द्रोणाचार्य का भी और उनके साथ अन्य आचार्यों का बिना नामोल्लेख के स्मरण किया है ।
ज्ञाताधर्मकथांग सूत्रवृत्ति की प्रशस्ति में भी अभयदेवसूरि ने निर्वृतक कुल रूपी गगन के चन्द्र तुल्य सूरि-मुख्य द्रोणाचार्य का सादर स्मरण करते हुए इस वृत्ति ... संविग्न मुनिवर्ग श्रीमदजितसिंहाचार्यान्तेवासि यशोदेवगरण नामधेय साधोरुत्तरसाधकस्यैव विद्याक्रियाप्रधानस्य साहाय्येन समर्थितम् ।
१.
- स्थानांगवृत्ति प्रशस्ति ।
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