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________________ १४० ] [ जैन धर्म का मौलिक इतिहास - भाग ४ एक समय जिनेश्वरसूरि ने डियारणा नामक नगर में चातुर्मासावास किया । प्रतिदिन के व्याख्यान के अवसर पर ग्रागमिक उपदेश के साथ-साथ शिक्षाप्रद कथानकों के माध्यम से श्रोताओं को आगम के गहन विषय सुचारू रूपेरण हृदयंगम कराने के अभिप्राय से जिनेश्वरसूरि ने चैत्यवासी प्राचार्यों से आवश्यक पुस्तकें मंगवाई । चैत्यवासी प्राचार्य अपनी चैत्यवासी परम्परा का पाटण में पराभव करने वाले जिनेश्वरसूरि को अपना कोई भी ग्रन्थ देने को सहमत नहीं हुए । जिनेश्वरसूरि ने तत्काल कथानक कोश नामक विशाल ग्रन्थ की रचना प्रारम्भ कर दी । प्रतिदिन अपराह्न में दो प्रहर तक वे कथानक कोश की रचना करते और दूसरे दिन प्रातः व्याख्यान में उन कथानकों के माध्यम से श्रोताओं को विमुग्ध कर देते । इस प्रकार चार मास में उन्होंने विशाल कथानक कोश की रचना सम्पन्न कर दी । १ 1 चैत्यवासियों को पराजित करने के अनन्तर श्री जिनेश्वरसूरि एवं श्री बुद्धिसागरसूरि अपने सन्त वृन्द के साथ जाबालिपुर आये। यहां श्री जिनेश्वरसूरि ने विक्रम सम्वत् १०८० में प्रमालक्ष्म आदि कतिपय ग्रन्थों और बुद्धिसागरसूरि ने सात हजार श्लोक परिमारण के 'बुद्धिसागर व्याकरण' नामक व्याकररण ग्रन्थ की - रचना पूर्ण की, जैसा कि बुद्धिसागर द्वारा रचित व्याकरण ग्रन्थ के अन्त में उल्लिखित निम्न श्लोक से प्रकट होता है : श्री विक्रमादित्य नरेन्द्रकालात्, साशीतिके याति समासहस्र । (वि. सं. १०८० ) सश्रीक जाबालिपुरे तदाद्यं, दृव्धं मया सप्त सहस्रकल्पम् ।।११।। वृद्धाचार्य प्रबन्धावलि में और खरतरगच्छ को बीकानेर नगरस्थ श्रीपूज्य "दान सागर जैन ज्ञान भंडार" के उपाश्रय की श्री क्षमा कल्याण द्वारा सं. १८३० में रचित गुर्वावली में श्री जिनेश्वरसूरि का गृहस्थ जीवन का परिचय उपरिवर्तित परिचय से भिन्न प्रकार का ही दिया हुआ है । 'वृद्धाचार्य प्रबन्धावलि" के जिनेश्वरसूरि प्रबन्ध में श्री जिनेश्वरसूरि का परिचय निम्नलिखित रूप में दिया गया है : "वर्द्धमानसूरि विभिन्न क्षेत्रों में विचरण करते हुए सिद्धपुर नगर में पधारे । दूसरे दिन प्रातः काल श्री वर्द्धमानसूरि जिस समय जंगल से नगर की ओर लौट १. खरतरगच्छ वृहद् गुर्वावली । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002074
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1995
Total Pages880
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
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