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________________ १२४ ] [ जैन धर्म का मौलिक इतिहास - भाग ४ ए रीते चोर्यासी आचार्यों ने बडना वृक्ष नीचे सूरिपद आपवा थी तेश्रोनु बड़गच्छ नाम पड्यु ं । हवे त्यां थी विहार करी ते मांना जे प्राचार्ये प्रथमनु चातुर्मास जे गाम मां कयु ते गाम ना नाम थी तेश्रोनो गच्छ शुरु थयो । तेश्रो मांना पहेला आचार्य श्री सर्व (देवसूरि ) विहारकरता थकां गुजरात नां बडियार देश मां आवेलां शंखेश्वर गाम मां प्रावी चातुर्मास रह या अने तेमना गच्छनूं शंखेश्वर गच्छनाम पड्यु' ते गाम मां सोलंकी वंशनो सांख्यकुमार नामे क्षत्रिय तेमनो शिष्य थयो तथा केटलेक काले ते विद्वान् थवां थी आचार्य श्रीए वि. सं. ७४५ ( मतान्तर वि. सं. १०१६) मांहि सूरिपद शंखेश्वर गाम मांज अरिणने आप्यु तेनूं बीजूं नाम पद्मदेवसूरि राख्यं । तेनी मांहे विक्रम सं. ७७२ ( मतान्तर वि. सं. १०४३) उभयप्रभसूरि थया । " १ 1 स्व. पं. श्री कल्याण विजय जी की डायरी से प्राप्त इस सामग्री से श्री पूज्यजी म. के बीकानेर नगरस्थ “श्री दान सागर जैन ज्ञान भण्डार" में उपलब्ध ( खरतरगच्छीय) गुर्वावली के इस उल्लेख की पुष्टि होती है कि विक्रम की १०वीं शताब्दी के उद्योतनसूरि नामक ग्राचार्य ने अपने पास अध्ययनार्थ आए हुए ८४ शिक्षार्थी साधुओं को आागमों का तलस्पर्शी ज्ञान देने के पश्चात् उन सभी को क्रमशः पृथक्-पृथक् प्राचार्य पद प्रदान किये। दान सागर जैन ज्ञान भण्डार, कार की गुर्वावली के उल्लेखानुसार उद्योतनसूरि आगमों के पारदर्शी विद्वान्, विशुद्ध श्रमणाचार के परिपालक, परम क्रियानिष्ठ किन्तु शिष्य संततिविहीन श्रमण श्रेष्ठ थे । जिन ८४ साधुयों को उन्होंने प्राचार्य पद प्रदान किये, उनमें से ८ ३ साधु तो विभिन्न ८३ श्रमरणसमूहों के साधु थे, जिन्हें उनके स्थविरों ने उद्योतनसूरि के पास विशुद्ध श्रमणाचार का समीचीन बोध एवं आगमों का गहन ज्ञान प्राप्त करने के उद्देश्य से भेजा था। पं. श्री कल्यारण विजय जी म. के भण्डार से प्राप्त उक्त पत्र को दृष्टिगत रखते हुए ऊपर उद्धत श्री दानसागर जैन ज्ञान भण्डार, बीकानेर की उक्त पट्टावली के उद्योतनसूरि विषयक उल्लेख पर विचार करने से ऐसा अनुमान किया जाता है कि वि. सं. ६६४ में सर्वदेवसूरि को वटवृक्ष के नीचे प्राचार्य पद प्रदान करने वाले उद्योतनसूरि और वर्द्धमानसूरि को तथा ८३ श्रमण समुदायों के ८३ स्थविरों के ८३ शिष्यों को आचार्य पद प्रदान करने वाले उद्योतनसूरि समान नाम वाले दो भिन्न-भिन्न आचार्य थे । इस अनुमान की पुष्टि पं. कल्याण विजय जी म. सा. की डायरी के श्री उद्योतनसूरि संबंधी उल्लेख से होती है, जिसमें कि उद्योतनसूरि का सत्ताकाल वि. सं. ७२३ और वि. सं. ६६४ दो प्रकार का दिया गया है । भिन्न-भिन्न समय में हुए समान नाम वाले दो आचार्यों का सत्ताकाल एक दूसरे से भिन्न होते हुए भी वस्तुत: उद्योतनसूरि नामक एक ही १. प्रसिद्ध जैन इतिहास वेत्ता स्व. पं. श्री कल्याण विजय जी म. सा. के जालोर ज्ञान भण्डार में विद्यमान उनकी डायरी सं. ११ के पृष्ठ १६४........की प्रतिलिपि । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002074
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1995
Total Pages880
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
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