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________________ सामान्य श्रुतधर काल खण्ड २ ] उद्योतनसूरि [ १०६ अथवा वर्चस्व के कारण अति क्षीण, अतिगौरण रूप में अवशिष्ट रह जाने का सर्व सम्मत रूप में उल्लेख किया है । इस प्रकार के अनुमान के पीछे प्रमारणों का बाहुल्य न हो ऐसी बात भी नहीं है। तपागच्छ पट्टावली अादि तपागच्छीय ऐतिहासिक साहित्य में एक नहीं अनेक उल्लेख इस प्रकार के हैं, जिनसे यह आभास होता है कि तपागच्छीय पट्टावली के अनुसार भगवान् महावीर की प्राचार्य परम्परा के ३५वें प्राचार्य श्री विमलचन्द्रसूरि के पट्टधर शिष्य एवं ३६वें प्राचार्य श्री सर्वदेवसूरि के गुरु वृहद्गच्छ के संस्थापक ३५वें प्राचार्यश्री उद्योतनसूरि और वर्द्धमानसूरि के गुरु खरतरगच्छ के आदि प्राचार्य श्री उद्योतनसूरि सुनिश्चित रूप से भिन्न-भिन्न समय में हुए समान नामा दो भिन्न प्राचार्य थे। इस सन्दर्भ में निम्नलिखित तथ्य विचारणीय हैं : १. वि० सं० १४६६ में श्री गुणरत्नसूरि द्वारा रचित-"श्री गुरु पर्वक्रमवर्णनम्" नामक प्राचीन छोटे से ग्रन्थ में इन उद्योतनसूरि द्वारा वृहद्गच्छ की स्थापना का समय और अपने ८ शिष्यों को प्राचार्य पद प्रदान करने का निम्नलिखित उल्लेख है : युगांकनन्द ६६४ प्रमिते गतेऽब्दे, श्री विक्रमार्कात्सह संघलोकैः । पूर्वविनीतो विहरन्धराया मुद्योतनःसूरिरथाबुंदाधः ।।८।। आगत्य टेलीपुरसीम संस्थ पद्यासमासन्नवृहद्वटाधः । शुभे मुहूर्ते स्वपदेऽष्टसूरी ... नतिष्ठपत्सौवकुलोदयाय ॥६॥' अर्थात् विक्रम संवत ६६४ तदनुसार वीर नि० १४६४ में संघ के साथ पूर्वीय भारत से विहार करते हुये उद्योतनसूरि आबूपर्वत की तलहटी में अवस्थित टेलीपुर की सीमा के वन में दिन ढलते ढलते पहुँचे और एक विशाल वटवृक्ष के नीचे ठहरे । वहां रात्रि में शुभ मुहूर्त देखकर उन्होंने जिनशासन के अभ्युदय के उद्देश्य से अपने ८ शिष्यों को प्राचार्यपद प्रदान किया। २. वि. सं. १६४८ की चैत्र शुक्ला ६ शुक्रवार के दिन ५८वें पटधर हीरविजयसूरि के निर्देशानुसार उपाध्याय श्री विमलहर्षगरिण आदि चार गीतार्थों द्वारा अनेक प्राचीन पट्टावलियों के आधार पर संशोधित महोपाध्याय श्री धर्मसागर गरिण की स्वोपज्ञवृति सहित " श्री तपागच्छ पट्टावली सूत्रम्" में एतद्विषयक उल्लेख निम्नलिखित रूप में है : १. पट्टावली समुच्चय प्रथम भाग, पष्ट २७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002074
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1995
Total Pages880
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
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