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वीर निर्वाण की पन्द्रहवीं सोलहवीं शताब्दी के जिनशासन-प्रभावक गंगवंशीय
महाराजा एवं सेनापति
श्रमण भगवान् महावीर के ४६वें पट्टधर आचार्य श्री जयसिंह के प्राचार्यकाल में गंग वंश के चौबीसवें राजा महाराजा मारसिंह गंग कन्दर्प-सत्यवाक्य- नवलम्ब कुलान्तक देव (वीर निर्वाण सम्वत् १४६० से १५०१) बड़ा ही प्रतापी एवं जिनशासन-भक्त, परम श्रद्धालु और जिनशासन-प्रभावक राजा हुआ। इसने अपने ग्यारह वर्ष के शासनकाल में जिन शासन के प्रचार-प्रसार, अभ्युदय एवं सर्वतोमुखी अभ्युत्थान के अनेक महत्वपूर्ण कार्य किये। जैसा कि इसी इतिहास ग्रन्थमाला के तृतीय भाग में बताया जा चुका है, गंग वंश के इस महाप्रतापी राजा ने अपनी आयु के सन्ध्याकाल में बंकापुर के भट्टारक अजितसेन की सन्निधि में शक सम्वत् ८९६ तदनुसार वीर निर्वाण सम्वत् १५०१ में संलेखना-संथारापूर्वक पण्डित मरण का वरण किया। यह महाराजा वस्तुत: चालुक्य राजकुमार राजादित्य के लिये कराल काल के समान भयोत्पादक था। इतिहास-प्रसिद्ध जिनशासन प्रभावक सेनापति चामुण्डराय इस चौबीसवें गंगराज के शासनकाल में एवं इसके पुत्र महाराजा राचमल्ल, राजमल्ल चतुर्थ, सत्यवाक्य (ईस्वी सन् ६७४ से ६८४ तदनुसार वीर निर्वाण सम्वत् १५०१ से १५११) का भी सेनापति और मन्त्री रहा ।
गंगवंश के मन्त्री एवं सेनापति चामुण्डराय ने वीर निर्वाण सम्वत् १५५५ तदनुसार ईस्वी सन् १०२८ की तेईस मार्च के दिन श्रवण बेलगोल पर्वतराज के उच्चतम शृङ्ग को कटवा छंटवा कर एक ही ठोस पाषाणपुज की उच्चकोटि की कला की प्रतीक गोम्मटेश्वर (बाहुबलि) की विश्व भर के लिये आश्चर्यस्वरूपा साढ़े छप्पन फुट ऊंची एक विशाल मूर्ति का निर्माण करवाया था।
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