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________________ अड़तीसवें युग प्रधानाचार्य धर्मघोष (३८) जन्म वीर निर्वाण सम्वत् १४६६ दीक्षा वीर निर्वाण सम्वत् १५०४ सामान्य साधु पर्याय वीर निर्वाण सम्वत् १५०४ से १५२० युग प्रधानाचार्य काल वीर निर्वाण सम्वत् १५२० से १५६७ गृहस्थ पर्याय ८ वर्ष सामान्य साधु पर्याय १५ वर्ष (पन्द्रह वर्ष) युगप्रधानाचार्य पर्याय ७८ वर्ष स्वर्ग वीर निर्वाण सम्वत् १५६७ सर्वायु १०१ वर्ष, ७ मास और सात दिन उपरिवरिणत तथ्यों के अतिरिक्त आपका जीवन परिचय उपलब्ध नहीं होता। आपके पश्चात् विभिन्न गच्छों एवं समय में धर्मघोष नाम के अनेक आचार्य हुए हैं । नाम साम्य के कारण भ्रान्तिवश एक दो इतिहासविदों ने इन्हें राजगच्छ के प्राचार्य शीलभद्र सूरि का तृतीय पट्टधर बताया है किन्तु ऐतिहासिक तथ्यों पर विचार करने के पश्चात् उनकी यह मान्यता नितान्त निराधार सिद्ध होती है। शीलभद्र सूरि के तृतीय पट्टधर धर्मघोष को विक्रम सम्वत् ११८६ तद्नुसार वीर निर्वाण सम्वत् १६५६ की रचना "धर्म कल्पद्रुम' उपलब्ध है, जबकि ३८वें युग प्रधानाचार्य धर्मघोष का वीर निर्वाण सम्वत् १५६७ अर्थात् इस रचना से ५६ वर्ष पूर्व ही स्वर्गवास हो चुका था। राजगच्छ के ये आचार्य धर्मघोष वस्तुतः ३६वें युगप्रधानाचार्य श्री विनयमित्र के युग प्रधानाचार्य काल में हुए हैं। युग प्रधानाचार्य श्री विनयमित्र के प्रकरण में इन राज गच्छीय प्राचार्य धर्मघोष का परिचय दिया जायेगा। -: ० : Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002074
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1995
Total Pages880
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
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